मध्य प्रदेश

भारत की शैव परंपरा पर विशेष व्याख्यान राज्य संग्रहालय में

भोपाल

संचालनालय पुरातत्त्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय अंतर्गत राज्य संग्रहालय के सभागार में विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, शासकीय नर्मदा महाविद्यालय, नर्मदापुरम् प्रो. हंसा व्यास ने "भारत की शैव परंपरा" पर विशेष व्याख्यान दिया। प्रो. व्यास ने प्रागैतिहासिक काल से लेकर परमार राजवंश के शासनकाल तक साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक प्रमाणों के आलोक में भारत में शैव परंपरा के विभिन्न पक्षों पहलुओं पर तथ्यात्मक एवं विश्लेषणात्मक प्रकाश डाला गया। उन्होंने शैवधर्म से संबंधित कई नवीन एवं अनछुए पहलुओं पर भी चर्चा की।

प्रो. हंसा व्यास ने शिव के वैदिक एवं पौराणिक महत्त्व को प्रकट करते हुए शैवधर्म संबंधी विशिष्ट साहित्यिक सृजनाओं पर भी विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने शैवधर्म संबंधी प्रमुखतम् अभिलेखों जैसे 401 ईस्वी का गुप्तकालीन उदयगिरि अभिलेख, यशोधर्मन का मंदसौर अभिलेख, 1080 ईस्वी का उदयपुर का नीलकण्ठेश्वर मंदिर अभिलेख आदि में प्रचलित शैवमत संबंधी सूचनाओं को प्रकट करते हुए मालवा में शैवधर्म एवं कला पर अपने विचार प्रस्तुत किये। उज्जैनी, दशपुर, विदिशा आदि स्थलों से विदित मुद्राओं (सिक्कों) एवं मुहरों पर हुए शैवांकनों के संदर्भ में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ सभागार में रखीं।

प्रो. हंसा व्यास ने अपने व्याख्यान में प्रागैतिहासिक भीमबैठका की गुफाओं में चित्रित शिव के रुद्र स्वरूप की साहित्यिक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए शिव के अनेकानेक प्रतिमानों, अनुग्रहों, संहार आदि मूर्त-अमूर्त उपादानों पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि शिव में जगत् की तीनों शक्तियाँ ब्रह्म, विष्णु और स्वयं महेश समाहित हैं, कहीं वे सृष्टिकर्ता हैं, तो कहीं पालनहार, तो कहीं संहारक। शिव उद्भव, पालन और संहार तीनों ही शक्तियों के विराट पूंज हैं और इसी कारण वे परमपिता परमेश्वर देवादिदेव महादेव हैं।

उन्होंने श्रावण (सावन) मास के पवित्र माह के आलोक में भी शिव के महत्त्व को सुंदर उदाहरणों से समझाया। उन्होंने अपने व्याख्यान में मध्यप्रदेश में शैवधर्म, कला एवं स्थापत्य के विषय में आरंभ से लेकर परमार काल तक उसके क्रमागत विकास आदि बिन्दुओं पर विस्तृत चर्चा की। मध्यप्रदेश में स्थित दो ज्योर्तिलिंगों उज्जैन और ओंकारेश्वर के महत्त्व को उन्होंने अनेक साहित्यिक एवं पुरातत्त्वीय साक्ष्यों के परिप्रेक्ष्य में आलोकित भी किया और उनके युग युगीन महत्त्व को सरल भाषा में समझाया।

 

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