मध्य प्रदेश

वीरांगना रानी दुर्गावती

· मनोज कुमार श्रीवास्तव

भोपाल

बलिदान दिवस-24 जून पर विशेष

मातृभूमि की रक्षा में प्राणों का बलिदान करके अपने लहू से इतिहास के पृष्ठों पर शौर्य एवं वीरता की प्रेरक और रोमांचक गाथा अंकित करने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती इतिहास में अमर हैं। सोलहवीं शताब्दी में गोंडवाना और गढ़ा-मण्डला की महारानी दुर्गावती ने मुगल सम्राट अकबर की आक्रान्ता सेनाओं से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने लोहा लिया और जबलपुर के निकट नर्रई नाला के पास वीरगति पाई।

रानी के बलिदान को 459 वर्ष हो जाने के बाद भी लोग उनके शौर्य, अप्रतिम देशप्रेम, साहस, शासन नैपुण्य, प्रजा वात्सल्यता और प्राणोत्सर्ग को याद करते हैं। चार शताब्दियों से अधिक समय बीतने के बाद भी दुर्गावती की कीर्ति, बलिदान गाथा और वीरता की कहानी अक्षुण्ण बनी हुई है। रानी दुर्गावती के प्रारंभिक जीवन के संबंध में अबुल फजल ने आइने अकबरी में लिखा है कि "राजकुमारी दुर्गावती महोबा के पास राव परगने के चंदेल वंशीय शासक शालिवाहन की पुत्री थी।" अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम के अनुसार दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरतसिंह की पुत्री थी।

उनका जन्म सन 1524 में हुआ। रानी दुर्गावती का विवाह गढ़ा-मंडला के तेजस्वी सम्राट संग्रामशाह के ज्येष्ठ पुत्र दलपतिशाह के साथ हुआ था। उन्होंने अनेक मंदिर, मठों, धार्मिक प्रतिष्ठानों सहित प्रजाहित में जलाशयों का निर्माण, धर्मशाला और संस्कृत पाठशालाओं की व्यवस्था की।

दुर्गावती के शासन में नारी सम्मान अपनी उत्कर्ष अवस्था पर था। नारी के अपमान पर मृत्युदंड दिया जाता था। रानी नित्य नर्मदा स्नान करती थी और इसके लिए राज प्रसादों से नर्मदा तट तक कई गुप्त और अभेद्य मार्ग बनवाये गये थे। राज्य में संस्कृत पंडितों और कवियों को राज्य सम्मान प्राप्त था। रानी को विद्या, ज्ञानार्जन और साहित्य के प्रति अत्यधिक रुचि थी।

दुर्गावती का राज्य छोटे-बड़े 52 गढ़ों से मिलकर बना था, जिसमें सिवनी, पन्ना, छिंदवाड़ा, भोपाल, तत्कालीन होशंगाबाद और अब नर्मदापुरम, बिलासपुर, डिंडौरी, मंडला, नरसिंहपुर, कटनी तथा नागपुर शामिल थे। मोटे तौर पर राज्य विस्तार उत्तर से दक्षिण 300 मील एवं पूर्व से पश्चिम 225 मील कुल 67 हजार 500 वर्ग मील के क्षेत्र में था।

रानी दुर्गावती ने सन् 1549 से 1564 तक अपने पुत्र वीरनारायण सिंह के नाम पर गोंडवाना साम्राज्य की बागडोर सम्भाली। राज्य की सुरक्षा के लिये किले बनवाये और किलों की मरम्मत की। शहर और गाँव बसाये और कृषि प्रधान 23 हजार गाँवों की देख-रेख की। आइने अकबरी में लिखा है कि गढ़ा-मण्डला की आमदनी 18 लाख 57 हजार दीनार थी। दुर्गावती के राज्य में सोने के सिक्के चलते थे। राज्य में इतनी समृद्धि थी कि कहा जाता है कि लोग अपनी जमीन का लगान स्वर्ण मुद्राओं से चुकाते थे। राज्य के 12 हजार गाँवों में रानी के प्रतिनिधि शिकदार रहते थे। प्रजा की फरियाद रानी स्वयं सुनती थी।

रानी ने कभी दूसरों के राज्यों पर न तो आक्रमण किया और न साम्राज्यवादी तरीकों की विस्तारवादी नीति अपनाई। गोंड़वाने पर मालवा के बाजबहादुर ने आक्रमण किया। पहली बार के संघर्ष में बाजबहादुर का काका फतेह खाँ मारा गया और दूसरी बार कटंगी की घाटी में बाजबहादुर की सारी फौज का सफाया हुआ। बाजबहादुर की पराजय ने रानी दुर्गावती को गढ़ा मण्डला का अपराजेय शासक बना दिया। गढ़ा-मण्डला की समृद्धि से प्रभावित आसफ खाँ के नेतृत्व में दस हजार घुड़सवार और तोपों, गोला-बारूद से लैस मुगल सैनिकों ने दमोह की ओर से गोंडवाना राज्य पर हमला कर दिया। मंत्रियों ने रानी को पीछे हटने एवं संधि करने की सलाह दी। लेकिन स्वाभिमानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति से बात करना मुनासिब नहीं समझा।

जब मुगल सेना का तोपखाना जबलपुर के बारहा ग्राम के पास नर्रई नाला के निकट पहुँचा तो रानी ने कूटनीति का परिचय देते हुए मंत्रियों से कहा कि रात्रि में ही मुगल सेना पर आक्रमण करना उचित होगा। रानी के सलाहकारों ने रानी की रणनीति का समर्थन नहीं किया। विषम परिस्थितियों में रानी स्वयं सैनिक वेश में अपने प्रिय हाथी सरमन पर सवार होकर दो हजार पैदल सैनिकों की टुकड़ी के साथ निकल पड़ी। रानी और उनका किशोर पुत्र असाधारण वीरता के साथ मुगल सेना पर टूट पड़े। इसी बीच रानी की कनपटी एवं आँख के पास तीर लगने से रानी घायल हो गई। उन्हें लगा कि मुगलों की इस सेना को इस अवस्था में पराजित करना संभव नहीं है तो उन्होंने युद्ध स्थल में स्वयं की छाती पर कटार घोप कर 24 जून 1564 को प्राणोत्सर्ग कर दिया।

वीरांगना दुर्गावती की शासन व्यवस्था, रण-कौशल और शौर्य की अलग-अलग कालखंडों के इतिहासकारों ने अपने-अपने नजरिये से समीक्षा की है। संस्कृत में राजकवियों ने उन पर प्रशस्तियां लिखी है। गोविन्द विश्वास भावे ने रानी दुर्गावती के संपूर्ण जीवन और चरित्र पर अंग्रेजी में एक विशद लेख लिखा है जो उनकी प्रसिद्ध पुस्तक "फाइव फेमस वुमेन ऑफ इंडियन हिस्ट्री" में है। उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा के अनुसार "रानी जैसे व्यक्तित्व को अवतार की कोटि में रखा जा सकता है।" आइने अकबरी के लेखक अबुल फजल ने लिखा है कि "रानी ने महान कार्य करते हुए अपनी दूरदर्शिता और योग्यता से राज्य किया।

उसने मांडू के शासक को हराया। रानी के पास बड़ी संख्या में घुड़सवार और एक हजार प्रसिद्ध हाथी थे। वे 'भाला और बंदूक दोनों में ही दक्ष थीं।" प्रसिद्ध इतिहासकार विंसेन्ट स्मिथ लिखते हैं कि "उत्तम चरित्र वाली रानी पर अकबर का आक्रमण एक अन्यायपूर्ण अत्याचार कहा जायेगा।" फारसी इतिहासकार फरिश्ता ने भी रानी का यशोगान किया और कहा कि "उनका अंत भी उतना महान और उच्च था जितना उनका जीवन।" आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ब्रज भाषा में दुर्गावती की यश गाथा लिखी है।

 

advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button