छत्तीसगढ़

खैरागढ़ : मनरेगा कार्य स्थल पर पहुँचकर, महिलाओं के सुरक्षा की दी जानकारी

अंतरराष्ट्रीय महिला सप्ताह में विशेष जागरूकता कार्यक्रम का हुआ आयोजन

विधिक सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत पैरा-लीगल वालंटियर ने बताया सुरक्षा और न्याय के उपाय

खैरागढ़ जिला विधिक सेवा प्राधिकरण राजनांदगांव के अध्यक्ष विनय कुमार कश्यप के निर्देशानुसार एवं तालुक विधिक सेवा समिति खैरागढ़ के अध्यक्ष चन्द्रकुमार कश्यप व सचिव देवाशीष ठाकुर के मार्गदर्शन में अंतरराष्ट्रीय महिला सप्ताह के अवसर पर महिलाओं हेतु विशेष जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। खैरागढ़ के ग्राम कोयलीकछार में डबरी निर्माण कार्य में लगे हुए, मजदूर महिलाओं के बीच पहुंचकर पैरा लीगल वालंटियर ने महिलाओं के विरुद्ध होने वाले विभिन्न अपराधों के संबंध में जागरूक किया।

विधिक सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत पैरा-लीगल वालंटियर गोलूदास ने आयोजन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में सबसे जघन्य व घृणित अपराध दुष्कर्म है क्योंकि यह अपराध पीड़ित के न केवल शरीर बल्कि उसके अंतर्मन उसकी आत्मा संपूर्ण जीवन को प्रभावित करता है। समाज की आवश्यकता अनुसार समय-समय पर कानून में संशोधन किए जाते है, वर्ष 2012 के बाद से महत्वपूर्ण बदलाव आया है दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया केस में एक ओर संपूर्ण देश को झकझोर दिया वहीं दूसरी ओर इसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2012 में भारतीय आपराधिक विधि में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए इस संशोधन के पश्चात बलात्कार की परिभाषा बहुत व्यापक रूप दिया गया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अनुसार किसी महिला के साथ उसके भी इच्छा के विरुद्ध या सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाए जाने को बलात्कार माना जाता है किसी भी प्रकार से यदि धमकी देकर यदि सहमति ली जाती है और शारिरिक संबंध बनाया गया हो उसे भी बलात्कार माना जाता है। इसी प्रकार शादी का झूठा आश्वासन देकर शारीरिक संबंध बनाया जाना भी बलात्कार कि श्रेणी में माना जाता है। महिला के शराब के नशे में होने, मानसिक स्थिति ठीक ना होने, 18 वर्ष की कम आयु कि महिला होने की स्थिति में उसकी सहमति या असहमति का कोई विधिक महत्व नहीं है। ऐसी घटनाओं की जानकारी आए दिन मिलती है समाचार पत्रों टीवी चैनलों मीडिया के माध्यम से सुनने को मिलती है परंतु आज भी सच्चाई यह है कि ज्यादातर मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराई जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारे समाज में पीड़ित महिला को ही अपराधी या दोषी की तरह देखा जाता है। उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जैसे महिला की ही कोई गलती हो। समाज के डर से लोग रिपोर्ट करने के बचने का प्रयास करते हैं। 

इस संबंध में यह जानकारी देना आवश्यक है कि बलात्कार पीड़ित की पहचान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में प्रकट किए जाने को धारा 228 का भारतीय दंड संहिता में दंडनीय अपराध माना गया है जिसके लिए 2 वर्ष तक का कारावास और दंड का प्रावधान है। दुष्कर्म के संबंध में एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी क्षतिपूर्ति के संबंध में है। बलात्कार के मामले में पीड़ित/पीड़िता को अधिकतम 10  लाख तक की क्षतिपूर्ति दी जा सकती है और अपराधी को  10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की दंड का प्रावधान है।

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