पिछले एक महीने के दौरान बस्तर में भाजपा के कई नेता, नक्सलियों के हाथों मारे जा चुके हैं। इनमें जगदलपुर के बुधराम करटाम, बीजापुर के नीलकंठ कक्केम और नारायणपुर के जिला उपाध्यक्ष सागर साहू शामिल हैं। चार साल पहले भाजपा विधायक भीमा मंडावी भी नक्सलियों के हमले में मारे गए थे..
छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए सभी दल तैयारियों में जुट गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस बात का संतोष है कि राज्य में अब नक्सलियों की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। सुरक्षा बल, नित्य नए कैंप स्थापित कर रहे हैं। चौतरफा बढ़ते दबाव के चलते, नक्सली बड़े पैमाने पर सरेंडर करने लगे हैं। इन सबके बीच नक्सलियों को ‘पॉलिटिक्स’ मंच से कुछ ‘ऑक्सीजन’ मिलती दिख रही है। उसी ‘पॉलिटिक्स’ के चलते छत्तीसगढ़ में भाजपा के ‘जिताऊ’ उम्मीदवार ‘निशाने’ पर आ गए हैं। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के प्रभावी नेताओं पर नक्सलियों का हमला हो सकता है।
दल विशेष से ‘मोरल स्पोर्ट’ मिलने की बात
पिछले एक महीने के दौरान बस्तर में भाजपा के कई नेता, नक्सलियों के हाथों मारे जा चुके हैं। इनमें जगदलपुर के बुधराम करटाम, बीजापुर के नीलकंठ कक्केम और नारायणपुर के जिला उपाध्यक्ष सागर साहू शामिल हैं। चार साल पहले भाजपा विधायक भीमा मंडावी भी नक्सलियों के हमले में मारे गए थे। सूत्रों का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य में माओवाद, अब अंतिम दौर में हैं। झारखंड और बिहार में तो लगभग हर इलाके में सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित हो चुके हैं। वहां से नक्सलियों को खदेड़ा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कहीं न कहीं इस तरह के संकेत मिलते हैं कि कोई राजनीति दल, माओवादियों के प्रति थोड़ा बहुत सॉफ्ट है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह उनका समर्थन करता है। सुरक्षा बलों के नियमित ऑपरेशन चल रहे हैं। इसके बावजूद माओवादियों को बस्तर में एक दल विशेष से ‘मोरल स्पोर्ट’ मिलने की बात कही जा रही है। उन्हें बहुम कम पावर वाला एक सेफ्टी वॉल नजर आता है। सूत्रों के मुताबिक, इस साल भाजपा के कई नेता, माओवादियों के टारगेट पर बताए जा रहे हैं। चुनाव से पहले किसी बड़े हमले की संभावना जताई गई है।
डीजीपी ने एनआईए को लिखा है पत्र
बस्तर में मारे गए तीन भाजपा नेताओं को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार, बचाव की मुद्रा में आ गई है। राज्य सरकार की ओर से डीजीपी अशोक जुनेजा ने एनआईए को पत्र लिख इस मामले की जांच करने का आग्रह किया है। सीएम भूपेश बघेल कहते हैं कि अब नक्सलियों का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस को मिल रही सफलता से नक्सली बौखलाहट में हैं। इसी वजह से वे जनप्रतिनिधियों पर हमला कर रहे हैं। उधर, भाजपा ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राज्य में सड़कों को जाम करने की घोषणा की गई है। पार्टी ने राजनीतिक षड्यंत्र का भी आरोप लगाया है। चुनाव को प्रभावित करने के लिए साजिश रची जा रही है। कांग्रेस ने भी 25 मई 2013 के दिन की याद दिलाई है। उस वक्त राज्य में भाजपा की सरकार थी। बस्तर की दरभा-झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर 30 लोगों की हत्या कर दी थी। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व मंत्री व तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके पुत्र दिनेश पटेल और पूर्व मंत्री महेंन्द्र कर्मा सहित कई दिग्गज नेता, कार्यकर्ता और सुरक्षा कर्मी मारे गए थे।
मामले की जांच को लेकर लगे थे आरोप-प्रत्यारोप
दरभा-झीरम घाटी मामले की जांच को लेकर खूब आरोप प्रत्यारोप लगे थे। एनआईए को मामले की जांच सौंपी गई। कई वर्षों बाद एनआईए ने लगभग तीन दर्जन नक्सलियों के खिलाफ चार्जशीट पेश की। हालांकि उस वक्त कांग्रेस नेताओं ने एनआईए की जांच को नकार दिया था। उनका आरोप था कि एनआईए ने भाजपा सरकार के हस्तक्षेप के चलते मामले की सही जांच नहीं की। हमले के मास्टर माइंड बताए गए दो नक्सली, गणपति और रमन्ना के नाम चार्जशीट से हटाने का आरोप लगाया गया। भाजपा सरकार ने जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। इन सबके बावजूद उस हमले की सच्चाई से पर्दा नहीं उठ सका। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं का आरोप था कि झीरम घाटी का हमला, भाजपा के शासनकाल में हुआ था। भाजपा नहीं चाहती थी कि मामले की जांच पड़ताल, निष्पक्ष तरीके से अपने अंजाम तक पहुंचे। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा, झीरम घाटी हत्याकांड के वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उस वक्त भूपेश बघेल ने एनआईए को जांच सौंपने के पक्ष में नहीं थे। अब भूपेश बघेल, सीएम हैं तो वे बस्तर में भाजपा नेताओं की हत्या का केस एनआईए को देने की बात कह रहे हैं।
वामपंथी उग्रवाद पर हुई है भारी चोट
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, देश में वामपंथी उग्रवाद संबंधी हिंसा में 77 फीसदी की कमी आई है। वर्ष 2010 के दौरान वामपंथी उग्रवाद हिंसा की 2213 घटनाएं हुई थी। अब वह संख्या घटकर 77 फीसदी रह गई है। हिंसा में मारे जाने वाले नागरिकों और सुरक्षा बलों की संख्या 2010 में 1005 थी तो 2021 में वह 147 रह गई है। इसमें करीब 85 फीसदी की गिरावट आई है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के अनुसार, सामाजिक और आर्थिक विकास के मोर्चे पर गृह मंत्रालय, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर कई तरह की विकास योजनाओं का संचालन करता है। इनमें नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाना, दूरसंचार नेटवर्क में सुधार, शैक्षणिक सशक्तिकरण और वित्तीय समायोजन पर विशेष जोर दिया गया है। गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम ‘यूएपीए’ के प्रावधानों को जहां भी आवश्यक हो, लागू किया जा रहा है। यूएपीए के महत्वपूर्ण मामले, आवश्यकता के मुताबिक जांच के लिए एनआईए को सौंपे जा रहे हैं।