Health: खराब मानसिक सेहत के साथ जी रहे भारतीय, इसी कारण कर रहे आत्महत्या
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार 14% भारतीयों को बिगड़े मानसिक स्वास्थ्य के लिए चिकित्सकीय हस्तक्षेप या कहें मदद की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ का यह भी आकलन है कि खराब मानसिक स्वास्थ्य के कारण हर 1 लाख नागरिकों में से 21.1 आत्महत्या कर रहे हैं।
भारत के लिए डब्ल्यूएचओ का दावा है कि औसतन 10 हजार लोगों के कुल जीवन में से 2,443 वर्ष तो मानसिक समस्याओं से जूझते गुजर रहे हैं। कुछ के लिए यह अवधि चंद हफ्तों की है, तो कुछ महीनों और वर्षों इनके साथ जी रहे हैं। इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री का आंकड़ा है कि देश में औसतन 4 लाख नागरिकों पर 3 ही मनोचिकित्सक हैं, जबकि हर 4 लाख पर 12 मनोचिकित्सक होने चाहिए, यानी कमी चार गुना है।
इससे खराब मानसिक सेहत से गुजर रहे लोगों के लिए हालात और विकट हो रहे हैं। साल 2012 से 2030 तक इसी वजह से भारत को 1.03 लाख करोड़ डॉलर के आर्थिक नुकसान की बात भी उसने कही है। यह आंकड़े देश के सालाना बजट 2022 के मुकाबले दोगुने से ज्यादा है।
मानसिक सेहत को स्वास्थ्य का जरूरी हिस्सा समझना चाहिए, लेकिन कई संकोच, पूर्वाग्रह व धारणाएं लोगों को इलाज से दूर रख रही हैं।
- बीते सप्ताह मार्केट रिसर्च एजेंसी इप्साॅस द्वारा मानसिक स्वास्थ्य पर प्रमुख 34 देशों के बीच रिसर्च करवाई।
- यहां 18% भारतीयों ने शारीरिक स्वास्थ्य को मानसिक से ज्यादा महत्व दिया, यह संख्या यूएई के 19% के बाद सबसे ज्यादा थी, यानी हम 33वें रहे।
आत्महत्या की तीसरी सबसे बड़ी वजह
एनसीआरबी के अनुसार 2021 में 13,792 लोगों ने मानसिक बीमारियों से जूझते हुए आत्महत्या की। यह देश में आत्महत्या की तीसरी सबसे बड़ी ज्ञात वजह है। 6,134 मामले 18 से 45 साल के युवाओं के थे। इसमें वे मामले शामिल नहीं, जिनमें कोई अन्य मानसिक तनाव था।
इन लक्षणों पर नजर रखें…उदास हैं या गुस्सा आता है
मनोचिकित्सकों के अनुसार अक्सर दुखी या उदास महसूस करना, सोच-विचार में उलझन, एकाग्रता की कमी, किसी बात को अत्यधिक डर, हमेशा खुद को दोषी मानने की भावना, मूड में अचानक बदलाव, दोस्तों या सामाजिक गतिविधियों से अलग-थलग रहना, ऊर्जा व उत्साह में कमी, वास्तविकता से दूर रहना और भ्रम में जीना आदि मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के शुरुआती लक्षण हैं।
इनकी वजह से हर बात पर गुस्सा आना, सभी से शत्रुता भरा व्यवहार, आत्महत्या के विचार, शराब या मादक पदार्थों को अत्यधिक सेवन और लोगों से न जुड़ पाने जैसी समस्याएं आ सकती हैं।
कार्यस्थल पर तनाव ने बढ़ाया बोझ
कंसल्टेंसी एजेंसी डेलॉइट के अनुसार विश्व के मानसिक समस्याओं से जूझ रहे नागरिकों में से 15 प्रतिशत भारत में हैं। इनमें से 80 प्रतिशत कोई चिकित्सकीय सहायता नहीं लेते, क्योंकि इनका इलाज संकीर्ण सोच के चलते किसी कलंक की तरह देखा जा सकता है। इसी एजेंसी ने 2021 और 2022 के मध्य तक भारत में करीब चार हजार कर्मचारियों से कार्यस्थल और मानसिक स्वास्थ्य पर सर्वे किया। इसके अनुसार,
लक्षण नजर आने पर अपने डॉक्टर से बात करें। जरूरी लगे तो मनोचिकित्सक की सलाह भी लें। अधिकतर लक्षण और इनसे पैदा हुई मानसिक समस्याएं खुद ठीक नहीं होती। आसपास किसी व्यक्ति में लक्षण नजर दिखें तो उससे खुल कर बात करें, संकोच न करें। यह किसी को मानसिक समस्या से निकलने में शुरुआती मदद कर सकता है।
अवसाद और डिमेंशिया जैसी आम स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर भी लोगों में जागरूकता बहुत कम है। बेचैनी, नींद न आना और याददाश्त कम होना इनके सामान्य लक्षण हैं। अधिकतर लोग इन लक्षण को भी नजरअंदाज करते हुए जीना चाहते हैं, यह उचित नहीं है। -डॉ. पीटी शिवकुमार, वरिष्ठ नागरिक मनोचिकित्सा, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस, दिल्ली
मानसिक समस्या होने पर भी लोग इसे स्वीकार नहीं कर रहे। वजह, सामाजिक अपमान से इसे जोड़ा जाता है। कई बार मनोचिकित्सा की बात पर परिवार के ही वरिष्ठ सदस्य गुस्सा हो जाते हैं। बेहतर यही है कि जांच करवाएं, दवाएं और इलाज का सही पालन करें। अपनी हॉबी से जुड़े रहें, सैर पर भी निकलें और लोगों के साथ जीने की कोशिश करें। -डॉ. धर्मेंद्र सिंह, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
तमाम झिझक छोड़ कर मानसिक सेहत को सुधारने के लिए चिकित्सकीय मदद लेने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही, हालांकि अब भी यह बहुत कम है।
ऑनलाइन चिकित्सा परामर्श के लिए काम कर रही एक कंपनी प्रैक्टो ने एक वर्ष में मानसिक स्वास्थ्य के लिए परामर्श मांगने वालों में 44% वृद्धि का दावा किया। इनमें आधे से अधिक लोग 25 से 34 आयु वर्ग के हैं। इनमें 61% पुरुष हैं।