राजनांदगांव। नेपाल, काठमांडू में हुआ डॉ. जागृत की पुस्तक का विमोचन
राजनांदगांव। केन्द्रीय हिन्दी विभाग, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू, नेपाल एवं साहित्य शोध संवाद फाउंडेशन, दिल्ली, भारत के संयुक्त तत्वाधान मेें, ‘‘वैश्विक परिपे्रक्ष्य में राम और रामायण का स्वरूप’’ विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमांडू , नेपाल, में किया गया। इस अवसर पर प्रो. राधाकान्त ठाकुर कुलपति, राष्ट्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय, तिरूपति, श्री बंसत चौधरी, साहित्यकार, नेपाल, प्रो. ज्ञानधुनुकचंद, मॉरीशस, डॉ. संजीता वर्मा, विभागाध्यक्ष, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू, श्री ऋषभदेव घिमिरे, साहित्यकार , नेपाल, श्री गोपाल अश्क, साहित्यकार श्री मनोज कुमार, अध्यक्ष साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन, दिल्ली, प्रो. श्वेता दीत्ति, त्रिभुवन वि.वि. काठमांडू, प्रो. संजय, प्रो. डॉ. सुमनरानी आदि विद्वत्जनों द्वारा दिग्विजय महाविद्यालय की प्रोफेसर डॉ बी.एन. जागृत की पुस्तक ‘‘आंचलिक उपन्यासों में छत्तीसगढ़ की ग्रामीण चेतना’’ का विमोचन किया गया।
इस अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में ‘विषय विशेषज्ञ’ के रूप में आमंत्रित डॉ. जागृत ने अपने वक्तव्य में कहा कि राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, उनको मानने वालों को उनके आदर्श व्यवहार का अनुकरण करना चाहिए। केवल नाम लेने मात्र से नहीं चलेगा। नाम के साथ, नाम की महिमा भी स्थापित करनी होगी।
भिन्न-भिन्न आचार्यों, मनीषियों ने समय-समय पर रामकाव्य की व्याख्या एवं टीका की है, और आगे भी टीकायें होती रहेंगी। राम काव्य में महिला पात्रों की चर्चा होती है तो श्रीसीता का नाम प्रमुखता से आता हैं। संपूर्ण रामकाव्य में सीता जी का स्वाभिमानी एवं सशक्त नारी का रूप दिखाई देता है। पति, राम के साथ प्रत्येक परिस्थितियों में निर्वाह करती हुई, समय-कुसमय के योग को सहती हुई, अंतत: गर्भावस्था में पति द्वारा त्याग दिये जाने पर वन में, आश्रम में रहकर अपने बच्चों, लव-कुश का पालन अकेले करती हैं। अश्वमेघ यज्ञ के अश्व को दोनों बालकों द्वारा रोक लिये जाने पर स्वयं श्रीराम को आना पड़ता है। इस समय ऋषि वाल्मीकि के बताने पर श्री राम को अपनी पत्नी और पुत्रों के संबंध में ज्ञात होता है।
श्री राम, श्रीसीता को अपने साथ ले जाना चाहते हैं परन्तु सीताजी, पति राम के साथ नहीं जाती हैं। वे इस समय अपनी माता धरती के गोद में समा जाती हैं और श्रीराम देखते रह जाते हैं। इस संबंध में गुणीजन अनेक व्याख्या एवं तर्क दते हैं परन्तु एक सामान्य सा तथ्य यह है कि सीता जी को अपने जीवन में घटित विभिन्न घटनाओं के कारण यह कठोर निर्णय लेना पड़ा। उन्होंने कहा कि नारी सशक्तिकरण और महिला स्वाभिमान को प्रस्तुत करने वाला यह बहुत ही विशिष्ट प्रसंग हैं।
इस अवसर पर भारत सहित अनेक देशों के हिन्दी भाषी साहित्यकार, विद्वत्जन उपस्थित थे। डॉ. जागृत को स्मृति चिन्ह, एवं सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महाविद्यालय को गौरवान्वित करने के लिए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. के एल. टांडेकर, डॉ. एच.एस. भाटिया, डॉ. अंजना ठाकुर, डॉ. अनिता शंकर, डॉ. शैलेन्द्र सिंह, डॉ. एस.एम. राय, श्री दीपक परगनिहा एवं समस्त महाद्यिालय परिवार ने डॉ. जागृत की इस उपलब्धि पर बधाई एवं शुभकामनायें दी हैं।