छत्तीसगढ़ के इस शहर में बांस से बनी तोपों से दी जाती है भगवान जगन्नाथ को सलामी, जानिए कैसे
छत्तीसगढ़ के बस्तर में खास अंदाज में मनाए जाने वाला ‘गोंचा पर्व’ आकर्षण का केंद्र होता है. बांस से बनी तुपकी, जिसे तोप कहा जाता है, इसकी आवाज भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में आंनद को दोगुना कर देती है. पूरे भारत में तुपकी चलाने की पंरपरा केवल बस्तर के जगदलपुर में ही देखने को मिलती है. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ़ होने पर बांस से बनी बंदूक से सलामी दी जाती है.
बस्तर के ग्रामीण पोले बांस की नली से तुपकी तैयार करते हैं, जिसमें एक जंगली मालकांगिनी के फल को बांस की नली में डालकर फायर किया जाता है, जिससे गोली चलने की आवाज आती है. तुपकी शब्द मूलत: तुपक से बना है जो तोप का ही अपभ्रंश माना जाता है. बस्तर के जानकार रुद्र पाणिग्राही का कहना है कि गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का चलन सालों से चला आ रहा है, जो केवल बस्तर में ही देखने को मिलता है. बस्तर में 613 सालों से मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में तुपकी खास आर्कषण का केंद्र होती है.
तुपकी बचने से लोगों को होती है अच्छी इनकम
यही वजह है कि ग्रामीण इन तुपकियों को रंग-बिरंगी पन्नियों से सजाकर इसे और भी आकर्षक बनाते है. गोंचा पर्व के दौरान बस्तर के अंचलों से पंहुचे ग्रामीणों को पर्व के दौरान तुपकी बेचकर एक अच्छी आय भी होती है. तुपकी चलन को भले ही आदिवासी अपने लिए एक खेल सा मानते हो, लेकिन पर्व के विधान से जुड़े लोगों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ की यात्रा के दौरान उन्हें दिए जाने वाले सम्मान में इसे सलामी की तरह देखा जाता है.