नई तकनीक : एक ही नर्स कर सकेगी वार्ड की निगरानी, भर्ती मरीज को अब नहीं उठानी पड़ेगी बार-बार बुलाने की जहमत
महाराष्ट्र के नागपुर स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (मेयो अस्पताल) में इस सेंसर रहित उपकरण की मदद से 200 मरीजों की जान बचाई गई। अस्पताल के चिकित्सीय अध्ययन में बताया गया कि सामान्य वार्ड में भर्ती मरीजों को समय रहते आईसीयू में शिफ्ट किया गया था।
अस्पताल में भर्ती मरीज को अब बार-बार नर्स बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। न ही मरीज को सामान्य से आईसीयू वार्ड में शिफ्ट करने के लिए डॉक्टर को जांच रिपोर्ट या नर्स की जानकारी पर निर्भर रहना होगा। भारतीय शोधार्थियों ने एक ऐसा सेंसर रहित रोगी निगरानी प्लेटफॉर्म डोजी तैयार किया है जिसकी मदद से अस्पताल के वार्ड में भर्ती सभी मरीजों की निगरानी केवल एक नर्स आसानी से कर सकती है।
यह नर्स एक मॉनिटर पर बैठे सभी मरीजों की जानकारी हर घंटे ले सकती है और अगर किसी की तबीयत बिगड़ रही है तो उसे तत्काल आईसीयू में शिफ्ट भी कर सकती है। मोदी सरकार ने इस नई तकनीक को मेक इन इंडिया में शामिल करते हुए ई-जेम प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया है।
यह उपकरण दिल्ली सहित देश के कुछ हिस्सों में सफलतापूर्वक कार्य भी कर रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में दिल्ली के वल्लभ भाई पटेल कोविड सेंटर में इसी उपकरण के जरिए मरीजों की निगरानी की गई थी और जरूरतमंद रोगियों को तत्काल नजदीकी अस्पताल में आईसीयू के लिए भर्ती कराया गया था।
क्या है यह सेंसर रहित उपकरण
शोधार्थियों ने दो तरह के सेंसर रहित उपकरण तैयार किया है जिसका नाम डोजी रखा है। एक, जिसे अस्पताल में स्थापित किया जा सकता है और दूसरा घर में कोई भी व्यक्ति अपने बिस्तर के नीचे रख सोते वक्त स्वास्थ्य बदलावों पर निगरानी रख सकता है। यह अभी देश के 300 से भी ज्यादा सरकारी अस्पतालों में स्थापित हो चुका है। दिल्ली सरकार के लोकनायक अस्पताल के अलावा एम्स इत्यादि में भी डॉक्टरों के लिए यह मददगार बन रहा है।
देश के अस्पतालों की स्थिति
- 1,00,000 से अधिक अस्पताल भारत में संचालित।
- 20,00,000 से ज्यादा बिस्तर अस्पतालों में मौजूद।
- 1250 आईसीयू बेड पर डिजिटल मॉनिटरिंग की सुविधा।
- 43,00,000 नर्सिंग कर्मचारियों की अस्पतालों में कमी।
नागपुर में 200 मरीजों की जान बचाई
महाराष्ट्र के नागपुर स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (मेयो अस्पताल) में इस सेंसर रहित उपकरण की मदद से 200 मरीजों की जान बचाई गई। अस्पताल के चिकित्सीय अध्ययन में बताया गया कि सामान्य वार्ड में भर्ती मरीजों को समय रहते आईसीयू में शिफ्ट किया गया था।