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डॉक्टरों ने 10 साल से बिस्तर पर पड़े मरीज को किया स्वस्थ, माइक्रो सर्जरी की मदद से हाथीपांव रोग का किया इलाज

हाथीपांव या एलिफेंटिएसिस एक ऐसा रोग है जिसमें शरीर का एक हिस्सा या पैर सूज जाता है। मरीज का पैर हाथी के पैर जैसा हो जाता है। द्वारका के रहने वाले अमित कुमार इस बीमारी से लगभग 10 सालों से जूझ रहे थे। उनका एक पैर सूजन के कारण 45 किलो और 120 सेंटीमीटर का हो गया था। वह चलने में असक्षम थे और सालों से बिस्तर पर थे। इस बीमारी के कारण वह इस कदर तनाव में आ गए थे कि उन्होंने बोलना तक छोड़ दिया था। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए कोई इलाज असर नहीं कर रहा था। लेकिन उन्होंने अगस्त 2021 में मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, पटपड़गंज कि ओर रुख किया। डॉ मनोज जौहर और मैक्स डॉक्टरों की टीम के ट्रीटमेंट के बाद आज अमित का पैर 65 सेंटीमीटर से कम हो गया है, जो कि पहले 120 सेंटीमीटर का था। आज वह सही से चलने लायक हो गए हैं। चलिए जानते हैं अमित कुमार की बीमारी और मैक्स अस्पताल पटपड़गंज के डॉक्टरों के इलाज के बारे में।

एलिफेंटिएसिस क्या है?

एलिफेंटिएसिस को हाथीपांव रोग भी कहते हैं। इसमें व्यक्ति का पैर हाथी जितना भारी भरकम हो जाता है। रोग विशेषज्ञ के मुताबिक, एक सामान्य पुरुष का पैर 35 से 40 सेंटीमीटर तक होता है। लेकिन अमित कुमार के पैर का साइज 120 सेंटीमीटर का हो गया था। 40 साल के अमित कुमार का 10 साल पहले एक रोड एक्सीडेंट हो गया था। इस हादसे में उनके लिम्फ में दरार आ गई थी। अमित ने बाएं ग्रोइन का ऑपरेशन करवाया था। जिसके बाद अमित को लिम्फेडेमा या एलिफेंटिएसिस विकसित होने लगा। इससे अमित के बाएं पैर में सूजन आने लगी और उनके पैर ने हाथी के पैर जैसा आकार ले लिया। 

हाथीपांव रोग से पीड़ित अमित कुमार

कैसे होता है यह रोग?

अमित का इलाज करने वाले और इस पूरे ट्रीटमेंट को लीड कर रहे मैक्स अस्पताल के डाॅ. प्रदीप के. सिंह ने बताया कि अमित कुमार का केस सामान्य फाइलेरिया जैसा ही है, जो अब एक्सीडेंट, कैंसर के बाद या इंफेक्शन के कारण होता है। शरीर में दो तरह के खून होते है, एक लाल खून और दूसरा सफेद खून। सफेद खून का बहाव लिंब प्लेजर से होता है । इंफेक्शन के कारण लिंब ब्लॉक होने लगता है, जिससे सूजन आने लगती है। अमित के केस में भी ऐसा ही हुआ। सफेद रक्त की धमनियां ब्लॉक होने के कारण उनका बायां पैर प्रभावित होने लगा।

फाइलेरिया का अधिक प्रभाव किस पर?

वैसे तो एक्सीडेंट, कैंसर या इंफेक्शन के कारण एलिफेंटाइसिस रोग किसी को भी हो सकता है। इसका किसी विशेष आयु वर्ग या लिंग भेद पर असर नहीं होता। लेकिन फाइलेरिया का भौगोलिक असर देखने को मिला है। मैक्स अस्पताल के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर मनोज जौहर के मुताबिक, आम तौर पर बिहार में फाइलेरिया की मरीज अधिक देखने को मिलते हैं। 

फाइलेरिया का इलाज

हाथीपांव का इलाज

यह बीमारी सामान्य है जिसके मामले सामने आते रहते हैं लेकिन डाॅ मनोज जौहर ने दावा किया कि एलिफेंटाइसिस का इलाज सामान्य नहीं था। अमित कुमार के इलाज के लिए मैक्स अस्पताल की टीम ने इलाज के ट्रेडिशनल तरीके को अल्ट्रा इलाज तकनीक से जोड़कर एक नए तरीके के इलाज पद्धति को विकसित किया, जो फिलहाल अभी भारत में कहीं और अपनाई नहीं गई है।

इलाज में लगा समय

इलाज में लगा समय 

अमित कुमार के इलाज को लेकर मैक्स अस्पताल की पूरी टीम लगी, जिसमें प्रदीप सिंह के साथ ही फिजियोथेरेपी, मेडिसिन विभाग भी शामिल था। जब डॉक्टर प्रदीप के पास यह केस आया तो उन्होंने अमित कुमार को ठीक करने का आश्वासन दिया। पहले उनके कई सारे टेस्ट कराए गए। उसके बाद फिजियोथेरेपी की गई। इलाज से मिल रहे रिस्पाॅन्स के आधार पर अमित कुमार की लिम्फो वेनस अनास्टोमोसिस नाम की सुपर फाइन माइक्रो सर्जरी (एलवीए) की गई। यह सर्जरी सफल रही। उनके इलाज में लगभग सात महीने लगे। अमित कुमार का ट्रीटमेंट अभी भी जारी है। 

मैक्स अस्पताल के इलाज की खास बात

इस रोग के पारंपरिक इलाज में डीबुलिंग, एब्लेटिव ट्रीटमेंट किया जाता है। जो शरीर में वसा और लिक्विड की ज्यादा मात्रा को फौरन हटा देता है। इससे शरीर को थोड़ी देर की राहत तो मिल जाती है लेकिन यह अक्सर बिगाड़ करने वाले होते हैं। हालांकि मैक्स की यह नई इलाज तकनीक से लगभग 5 महीने में ही सफल रिजल्ट देखने को मिले। अमित कुमार अब न केवल अपने बल पर चल सकते हैं। बल्कि सीढ़ियां चढ़ना और सामान्य जीवन में वापस लौटने की राह पर हैं। 

मरीज अमित कुमार 10 साल बाद हुए स्वस्थ

अमित कुमार ने बताया कि वह दिल्ली के कई बड़े और निजी अस्पतालों में गए लेकिन उन्हें इलाज न मिल सका। अगस्त 2021 में वह मैक्स अस्पताल में डॉक्टर प्रदीप सिंह के संपर्क में आए। जिसके बाद उनका इलाज शुरू हुआ। पहले उनके पैर के ऑप्टिकल स्टेट्स पर जाने के लिए डॉक्टर ने मैनुअल लिम्फैटिक ड्रेनेज थेरेपी की, फिर ट्रिपल बैंडिंग  के साथ ही कुछ पुराने तरीकों को अपनाया। 120 सेमी से उनका पैर 112 सेमी का हो गया। फिर उनकी 4 से 5 सर्जरी हुई। अमित कुमार की आखिरी सर्जरी 24 फरवरी को हुई थी। सर्जरी के बाद उनका पैर नरम हो गया। अब उनके बाएं पैर का घेरा 65 सेमी हो गया है और पैर का वजन 45 किलो से घटकर 25 किलो तक कम हो गया है।

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