छत्तीसगढ़राजनांदगांव जिला

संसार का कण-कण परमात्मा का अंश है, इसलिए प्रत्येक प्राणी की सेवा करेंः स्वामी विजयानंद गिरी

11 से 17 दिसम्बर तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग का द्वितीय दिवस

डोंगरगढ़। धर्मनगरी डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी नीचे मंदिर प्रांगण में दिनांक 11 दिसम्बर से 17 दिसम्बर 2021 तक प्रतिदिन शाम 4 बजे  से शाम 5.30 बजे तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग के द्वितीय दिवस प्रवचनकर्ता श्रद्वेय स्वामी श्री विजयानन्द गिरी जी (ऋषिकेश) ने कहा कि जो जैसा शरण लेता है परमात्मा भी उसी अनुसार शरण देते हैं। संसार का कण-कण परमात्मा का अंश है, इसलिए संसार के प्रत्येक प्राणी की सेवा करें। सेवा की शुरूवात अपने घर से करे। किसी के स्वभाव की चिंता किए बगैर हमें अपने कर्तव्य पर ध्यान देना चाहिए। अपने माता-पिता, जिसने हमें संसार में लाया उनकी सेवा करे। बृजुगों की सेवा से परमात्मा प्रसन्न हो जाते है और मानव को परमात्मा के चरणों में स्थान मिल जाता है। सेवा, धन, योग्यता, बल आदि सीमित होती है इसलिए इससे की गई सेवा भी सीमित होती है, लेकिन हृदय भाव असीमित होती है इसलिए हृदय भाव से की गई सेवा भी असीमित है। हृदय भाव से परहित की चिंता से संसार का कल्याण हो ना हो, चिंतन करने वाले मानव का कल्याण निश्चित है। हमारा संबंध संसार और परमात्मा, दोनों से है। संसार से संबंध कुछ लेने के लिए नहीं बल्कि सेवा के लिए है और परमात्मा से संबंध लेने नहीं, अपितु प्रेम देने के लिए है।

संसार में सेवाभाव और परमात्मा के पास प्रेमभाव से बिना किसी कामना के जाएं तो इसी जीवन में कल्याण हो जाएगा।परमात्मा के प्राप्ति का लगन हो तो कल्याण संभव, इसके लिए साधु बनने की आवश्यकता नहीं है। जिसे सबमें मैं परमात्मा दिखता है, उससे मैं छुपा नहीं रह सकता और वो मानव भी मुझसे छुपा नहीं रह सकता है। मानव जीवन का चरम लक्ष्य भगवान चरण को प्राप्त करना है। केवल मोह ही है, जो इसमें बाधक है। परमपिता की विशेष कृपा से सत्संग मिलता है और सत्संग से मानव का विवेक जागृत होता है।गीता प्रेस, गोरखपुर की पुस्तकों का लाभ उठाने का निवेदन करते हुए आयोजकगण मां बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति डोंगरगढ़, गोवर्धन फाउंडेशन अयोध्याधाम उ.प्र. तथा दुर्लभ सत्संग परिवार, छत्तीसगढ़ ने बताया कि कार्यक्रम में मास्क के बिना प्रवेश वर्जित है। सोशल डिस्टेंसिंग सहित अन्य कोविड-19 गाईड लाईन पालन अनिवार्य है। श्रद्वापूर्वक भाग लेने के अतिरिक्त व्यास पीठ एवं  आरती में  किसी भी प्रकार का भेंट व रूपया-पैसा न चढ़ाने, संतों का चरण स्पर्श न करने, फोटो नही खींचने, माला नही पहनाने व जयकारा है।  

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