कार्तिक पूर्णिमा का पर्व शुक्रवार को मनाया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्नान और दान से मनोवांछित फल मिलता है। हृषीकेश पंचांग के अनुसार, इस दिन पूर्णिमा तिथि का मान दिन में एक बजकर 20 मिनट तक, कृत्तिका नक्षत्र और छत्र नामक महाऔदायिक योग है। इस योग में पूजन-अर्चन से लोगों का मान-सम्मान बढ़ेगा। संकट से रक्षा भी होगी।
ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, इस दिन गंगा या पवित्र नदियों में स्नान से श्रद्धालुओं को पापों से मुक्ति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह में किए गए दान, व्रत, तप, जप का लाभ चिरकाल तक बना रहता है।
पंडित जोखन पांडेय शास्त्री के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा को प्रात: काल स्नान कर विधि पूर्वक शालिग्राम की पूजा करनी चाहिए। संभव हो तो सत्यनारायण व्रत कथा का भी आयोजन करे। सायंकाल मंदिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों और तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाएं। गंगा के जल या पवित्र नदियों के जल या नदी के तट पर दीपदान करें। इस तिथि में ब्राह्मणों को दान देने, भोजन कराने, गरीबों को भिक्षा देकर आशीर्वाद प्राप्त करने का विधान है।
आज मनाई जाएगी देव दिवाली
पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवतागण दिवाली मनाने पृथ्वी पर आते हैं। मान्यता के अनुसार त्रिपुर के नाश से प्रसन्न होकर देवताओं ने काशी में पंचगंगा घाट पर दीपोत्सव का आयोजन किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार काशी के राजा देवदास ने अपने राज्य में देवताओं को प्रतिबंधित कर दिया था।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदलकर भगवान शिव ने पंचगंगा घाट पर गंगा स्नान और अर्चन किया। जब यह बात राजा देवदास को मालूम हुई तो उन्होंने प्रतिबंध समाप्त कर दिया। इससे प्रसन्न होकर देवताओं ने दिवाली मनाई। काशी में देव दिवाली का जिक्र ह्वेनसांग ने भी किया है। ह्वेनसांग ने राजा हर्षवर्धन के समय में भारतवर्ष का दौरा किया था।