राजनांदगांव : दिग्विजय कॉलेजे में राष्ट्रीय वेबीनार : प्रेमचंद को कहा भारतीय संवेदना का रचनाकार
राजनांदगांव. प्रेमचंद जयंती के अवसर पर दिग्विजय महाविद्यालय के हिंदी अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग द्वारा राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया. इस वेबीनार में काशी हिन्दू विश्विद्यालय के डॉ. सदानंद शाही, जेनयू के डॉ. देवेंद्र चौबे, नागपुर विश्विद्यालय के डॉ. मनोज पांडेय और रांची विश्विद्यलय के डॉ. हीरानंदन प्रसाद ने प्रमुख वक्त के रूप में अपने विचार रखे. दुर्ग विश्विद्यालय की कुलपति डॉ. अरुणा पल्टा के मुख्य आतिथ्य और प्राचार्य डॉ. बीएन मेश्राम के निर्देशन में आयोजित इस वेबीनार का विषय प्रवर्तन विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर मुनि राय ने किया. इस अवसर पर प्राचार्य ने कहा कि कोरोना काल में भी महाविद्यालय में इस तरह की संगोष्ठी होती रही है, यह श्रृंखला आगे भी जारी रहेगी. कार्यक्रम का संचालन वेबीनार के सचिव डॉ. चंद्रकुमार जैन और सह संयोजक डॉ. बीएन जागृत ने किया. तीन घंटे तक चले इस वेबीनार में देश भर से लगभग चार सौ से अधिक प्राध्यापकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई और प्रेमचंद के साहित्य को नए ढंग से समझने का प्रयास किया. ‘प्रेमचन्द का साहित्य और भारतीय गांव’ विषय पर आधारित इस वेबीनार में कुलपति डॉ. अरुणा पल्टा ने प्रेमचंद के साहित्य को भारतीय किसान की वर्तमान समस्या से जोड़ते हुए कालजयी साहित्य कहा. डॉ. शंकर मुनि राय ने कहा कि प्रेमचंद भारतीय संवेदना के सबसे बड़े रचनाकार है. उनके साहित्य में कल्पना नहीं, यथार्थ का चित्रण हुआ है. विषय विशेषज्ञ डॉ. देवेंद्र चौबे ने कहा कि प्रेमचंद पहले ऐसे हिंदी कथाकार हैं जिन्होंने भारतीय गांव को अपने साहित्य का विषय बनाया. इसी प्रकार ग्रामीण नारी की चेतना को जागृत करने का काम भी सबसे पहले उन्होंने ही किया है. वेबीनार में प्रेमचंद संस्थान के निदेशक डॉ. सदानंद शाही (बीएचयू ) ने कहा कि प्रेमचंद आशावादी रचनाकार है, उनके पात्र दुःख में भी जीने की कल्पना करते है. प्रेमचंद का ग्रामीण सोच यह है कि गांव में व्यक्ति की पहचान उसकी पीढ़ियों से होता है. नागरी जीवन में व्यक्ति एकाकी होता है. मेहनत-मजदूरी करने वाली ग्रामीण संस्कृति में कृषक जीवन की पीड़ा को आपने करीब से महसूस किया है. नागपुर विश्व विद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पांडेय ने प्रेमचंद को ग्रामीण संस्कृति का रचनाकार साबित करते हुए कहा कि गांव का शोषण एक तरह की सामूहिक हिंसा है, इसकी उपेक्षा करके देश का विकास नहीं किया जा सकता है. इसी प्रकार डॉ. हीरानंदन प्रसाद (रांची विश्वविद्यालयय ) ने प्रेमचंद की प्रमुख कहानी ‘झूरी के बैल’ हीरा और मोती का उल्लेख करते हुए स्थापित किया कि प्रेमचंद गाँधीवादी और मार्क्सवादी सिद्धांतों का समन्वय करने वाले रचनाकार हैं. धन्यवाद ज्ञापन डॉ. चंद्रकुमार जैन ने किया.