डाक्टर हुए दूर, तब आयुर्वेद ने जीता था विश्वास
राजनांदगांव । पिछले एक साल में कोरोना की महामारी ने चिकित्सा क्षेत्र को भी बदलकर रख दिया। कोरोना के चलते डाक्टर मरीजों से दूर हो गए। चेकअप भी दूर से होने लगा। आपरेशन से पहले मरीजों को कोरोना टेस्ट कराना पड़ा। इस फेर में कई मरीजों की जान पर भी बन आई, कई की जान भी चली गई। पूरे कोरोना काल में डाक्टर और मरीजों का संबंध बिगड़ा हुआ रहा। संक्रमण के चलते डाक्टर मरीजों से दूरी बनाने लगे तो लोगों ने आयुर्वेद पर भरोसा जताया। महामारी से बचने के लिए आयुर्वेद का काढ़ा खूब चला। लगभग 65 से 70 फीसदी लोगों ने कोरोना काल में आयुर्वेद को अपनाया। जड़ी-बूटी व काढ़ा की खपत भी बढ़ी। जिला आयुर्वेद अधिकारी अरविंद मरावी ने कहा कि प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए बहुत लोगों ने कोरोना काल में आयुर्वेद को अपनाया है। अब कोरोना फिर लौट आया तो काढ़ा व अन्य आयुर्वेदिक दवाइयों की मांग बढ़ गई है। दवा ही दे रही राहत
कोरोना काल में संक्रमण की चपेट में आए शहर के तीन-चार लोगों से बातचीत की गई। उन्होंने बताया कि दवाइयों से ही संक्रमितों को मिल रही राहत। अस्पताल में संक्रमितों की देखरेख नहीं होती। केवल समय-समय पर दवाइयों का डोज स्टाफ नर्सों के माध्यम से पहुंचा दिया जाता था। कई बार मानसिक रूप से भी लोग कोरोना के नाम से परेशान हुए। हालांकि डाक्टरों की उपयोगी सलाह से अधिकांश लोग कोरोना को हराकर बाहर निकले हैं। फिर से लौट रहे कोरोना पर लोगों ने कहा कि संक्रमण से सुरक्षा हमारी ही जिम्मेदारी है। हम खुद को सुरक्षित रखेंगे तो हमारे साथ परिवार और अन्य लोग भी संक्रमित होने से बचेंगे।
कोरोना से पहली मौत ने बढ़ा दी थी दहशत कोरोना से पहली मौत शहर के सेठी नगर लखोली में रहने वाले 40 वर्षीय संतोष यादव की पिछले साल 15 जून को हुई थी। इस घटना ने शहर ही नहीं बल्कि जिलेभर में दहशत बढ़ा दी थी। ठीक तीन दिन बाद मृतक संतोष यादव के पिता की भी कोरोना से मौत हो गई। इसके बाद लखोली का सेठी नगर एरिया पूरी तरह सील हो गया था। मृतक की पत्नी व बच्चे समेत परिवार में 10 से 15 लोग संक्रमित हो गए थे। मोहल्ले में भी दर्जनों लोग संक्रमण की चपेट में आए थे। वर्तमान में यादव परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है। पिछले एक साल से स्वजन कोरोना का दंश ही झेल रहे हैं। हालांकि कोरोना की चपेट में आने के बाद सभी लोगों ने अपनी जीवनशैली बदल दी है। बावजूद इस घटना को याद कर मोहल्लेवासियों की धड़कनें तेज हो जाती हैं। मृतक के छोटे भाई ने बताया कि पूरे लाकडाउन तक लखोली के श्रमिकों को कहीं भी काम नहीं मिला। हर कंपनी वाले लखोली का नाम सुनते ही काम से निकाल देते थे। इस वजह से ही यहां के लोग आर्थिक संकट के दौर से आज भी गुजर रहे हैं।