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हाथी पर सवार होकर आ रही मां आपके द्वार, बरसेगी मां भगवती की कृपा

30 मार्च से चैत्र नवरात्र की शुरुआत होने जा रही है. नवरात्र 30 मार्च से लेकर 6 अप्रैल तक रहेंगे. इस साल मैय्या रानी के नवरात्र रविवार से शुरू हो रहे हैं, इसलिए माता हाथी पर सवार होकर आएंगी. शास्त्रों में देवी की हाथी की पालकी को बहुत शुभ माना गया है.

नवरात्र का शुभारंभ प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना यानी कलश स्थापना के साथ होता है. नवरात्र की घटस्थापना में देवी मां की चौकी लगाई जाती है और 9 दिनों तक मैय्या के 9 अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है. कलश को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है. मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा की जाती है. नवरात्र में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है. सालभर में कुल 4 नवरात्र आती हैं जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्र का महत्व काफी ज्यादा होता है. माना जाता है कि नवरात्र में माता की पूजा-अर्चना करने से देवी दुर्गा की खास कृपा होती है.

मां दुर्गा की सवारी वैसे तो शेर है लेकिन जब वह धरती पर आती हैं तो उनकी सवारी बदल जाती है और इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर धरती पर आएंगी. चैत्र नवरात्रि की तिथि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 29 मार्च को शाम 4 बजकर 27 मिनट से होगी और तिथि का समापन 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्र रविवार, 30 मार्च 2025 से ही शुरू होने जा रही है. चैत्र नवरात्र घटस्थापना मुहूर्त घटस्थापना का मुहूर्त- 30 मार्च को सुबह 6 बजकर 13 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 22 मिनट तक रहेगा, जिसकी अवधि 4 घंटे 8 मिनट की रहेगी. अगर आप मुहूर्त में कलशस्थापना न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते हैं. अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 01 मिनट से लेकर 12 बजकर 50 मिनट तक रहेगा. चैत्र नवरात्र पूजन विधि घट अर्थात मिट्टी का घड़ा. इसे नवरात्र के पहले दिन शुभ मुहूर्त के हिसाब से स्थापित किया जाता है. घट को घर के ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए. घट में पहले थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर जौ डालें. फिर इसका पूजन करें. जहां घट स्थापित करना है, उस स्थान को साफ करके वहां पर एक बार गंगा जल छिड़ककर उस जगह को शुद्ध कर लें. उसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं. फिर मां दुर्गा की तस्वीर स्थापित करें या मूर्ति. अब एक तांबे के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग पर लाल मौली बांधें. उस कलश में सिक्का, अक्षत, सुपारी, लौंग का जोड़ा, दूर्वा घास डालें. अब कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और उस नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर रखें. कलश के आसपास फल, मिठाई और प्रसाद रख दें. फिर कलश स्थापना पूरी करने के बाद मां की पूजा करें. चैत्र नवरात्र घटस्थापना सामग्री हल्दी, कुमकुम, कपूर, जनेऊ, धूपबत्ती, निरांजन, आम के पत्ते, पूजा के पान, हार-फूल, पंचामृत, गुड़ खोपरा, खारीक, बादाम, सुपारी, सिक्के, नारियल, पांच प्रकार के फल, चौकी पाट, कुश का आसन, नैवेद्य आदि. कौन सी तिथि का क्षय हो रहा है पंचमी तिथि का क्षय होने से इस बार नवरात्रि 9 दिन की बजाय 8 दिन की होगी। इस नवरात्रि को चैत्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह चैत्र माह में आती है। चैत्र नवरात्रि के अलावा इसे वासंतिक नवरात्रि भी कहते हैं। इस बार 31 मार्च को द्वितीया तिथि सुबह 9:12 मिनट तक रहेगी। इसके बाद तृतीया तिथि लग जाएगी जो 1 अप्रैल को सुबह लगभग 5 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। यानि तृतीया तिथि का क्षय होगा। इसलिए 31 मार्च को माता ब्रह्माचारिणी और चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी। चैत्र नवरात्रि और नव संवत्सर नवरात्र में माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा तो होती ही है, साथ ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी प्रथम तिथि से ही हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ भी होता है, जिसे हिंदू नव संवत्सर कहा जाता है। चैत्र नवरात्रि के शुक्ल पक्ष के प्रथम तिथि से विक्रम संवत का शुभारंभ होता है। जिसके आधार पर हमारा सनातन कैलेंडर निर्मित होता है। विक्रम संवत का प्रारंभ उस दिन पर आधारित है कि जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर आक्रमण करके उज्जैन नगरी को मुक्त कराया और एक नए युग का शुभारंभ किया। इस दिन उत्तर भारत में नवरात्रि के अलावा दक्षिण भारत में तेलुगु समाज उगादि पर्व मानता है, सौराष्ट्र और मराठवाड़ा में गुड़ी पड़वा पर्व मनाते हैं और सिंधी समाज वाले भगवान झूलेलाल जयंती अथवा चेटी चंड नामक पर्व मनाते हैं। चैत्र नवरात्रि 2025-माता के भोग और वस्त्र देवी माता को प्रसन्न करने हेतु हम भक्त उनके प्रिय भोग के साथ उनके मनपसंद रंग के श्रृंगार और वस्त्रो का भेंट देते हैं तो हमें उनकी विशिष्ट कृपा की प्राप्ति होती है। नवरात्रि की नौ देवियों को उनके पसंद के रंगों के वस्त्र तथा भोग निम्न प्रकार से भेंट करें। माता शैलपुत्री को नारंगी रंग प्रिय है अतः उन्हें नारंगी रंग के वस्त्र, चूड़ी, बिंदी, मिष्टान्न , फल, पुष्प इत्यादि भेंट करें। माता ब्रह्मचारिणी को श्वेत रंग प्रिय है, अतः उन्हें श्वेत रंग के वस्त्र, मिष्ठान, पुष्प इत्यादि भेंट करें। माता चंद्रघंटा को लाल रंग के वस्त्र, चूड़ी बिंदी आदि श्रृंगार, लाल रंग के पुष्प, फल और मिष्टान्न भेंट करिये। माता कुष्मांडा को आसमानी रंग प्रिय है। उन्हें आसमानी रंग के वस्त्र, चूड़ी, बिंदी , नीले रंग के पुष्प और मीठे पुए चढ़ाएं। माता स्कंदमाता को गुलाबी रंग पसंद है। अतः उन्हें गुलाबी रेशमी वस्त्र, चूड़ी बिंदी आदि श्रृंगार, गुलाब के पुष्प और हलवा चढ़ाएं। माता कात्यायनी को पीला रंग पसंद है। अतः उन्हें पीले रंग के वस्त्र, आभूषण, चूड़ी बिंदी आदि श्रृंगार, पीले फल और फूल भेंट करें। माता कालरात्रि को गहरा नीला रंग का रेशमी वस्त्र, चूड़ी बिंदी आदि श्रृंगार, इत्र, गाढ़े नीले रंग का पुष्प भेंट करें। और तली हुए मीठी पूड़ी अथवा उड़द की इमरती का भोग लगाएं। माता महागौरी को बैगनी रंग प्रिय है, अतः उन्हें बैगनी रंग के वस्त्र, चूड़ी और बिंदी चढ़ाएं। बैंगनी रंग के ही पुष्पों से श्रृंगार करें। और भोग में हलवा, पूरी और चना का भोग लगाएं। माता सिद्धिदात्री सतरंगी रंग पर प्रसन्न होती हैं। उन्हें सतरंगी रंग के रेशमी वस्त्र, श्रृंगार और आभूषण इत्यादि भेंट करें। रंग-बिरंगे पुष्प और नारियल के साथ हलवा, पूरी, खीर इत्यादि का भोग लगाएं। इस प्रकार नवरात्रि में यदि हम तन मन को शुद्ध रखकर पूरी आस्था और भक्ति के साथ माता की पूजा-उपासना करें, तो न केवल हमारे तन मन की शुद्धि होती है, बल्कि माता की आध्यात्मिक ऊर्जा और असीम कृपा की प्राप्ति होती है। माता दुर्गा के हाथी वाहन का महत्व ज्योतिष नियमों के मुताबिक़, नवरात्रि की शुरुआत और समाप्ति के दिन के आधार पर ही माता दुर्गा का वाहन तय होता है। इस बार की नवरात्रि रविवार से शुरू होकर सोमवार पर समाप्त हो रही है। नियम अनुसार रविवार को आगमन और सोमवार को प्रस्थान से आशय है, मां दुर्गा हाथी की सवारी पर होंगी। भागवत पुराण में भी मां की हाथी सवारी को बेहद शुभ माना गया है। यह वाहन सुख, समृद्धि, शांति और आर्थिक तरक्की का प्रतीक है। बताया जाता है कि, जब भी माता हाथी पर आती है तो देश में अच्छी बारिश होने की प्रबल संभावना होती है। इससे फसल अच्छी होती है और धन-धान्य के भंडार भरते है। कैसे तय होता है माता का वाहन? 1- अगर नवरात्रि रविवार या सोमवार से शुरू और खत्म होती है, तो माता का वाहन हाथी होता है। यह सुख, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। 2- अगर नवरात्रि मंगलवार या शनिवार से शुरू और ख़त्म होती है, तो माता की सवारी घोड़ा होती है। यह संघर्ष और उथल-पुथल का संकेत होता है। 3-अगर नवरात्रि गुरुवार या शुक्रवार से शुरू और खत्म होती है, तो माता की सवारी पालकी होती है। यह अस्थिरता और चुनौतियों का संकेत होता है। 4-अगर नवरात्रि बुधवार से शुरू और खत्म होती है, तो माता की सवारी नौका होती है। यह आपदा से मुक्ति और जीवन में शांति का संकेत है। नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूप नवरात्रि नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों 1. माँ शैलपुत्री, 2. माँ ब्रह्मचारिणी, 3. माँ चंद्रघंटा, 4. माँ कूष्मांडा, 5. माँ स्कंदमाता, 6. माँ कात्यायनी, 7. माँ कालरात्रि, 8. माँ महागौरी, 9. माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री: माता दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप देवी शैलपुत्री का है जो चंद्रमा का दर्शाती हैं। देवी शैलपुत्री के पूजन से चंद्रमा से जुड़ें दोषों का निवारण होता हैं। माँ ब्रह्मचारिणी: ज्योतिषीय दृष्टिकोण से माँ ब्रह्मचारिणी द्वारा मंगल ग्रह को नियंत्रित किया जाता हैं। माता के पूजन से मंगल ग्रह के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं। माँ चंद्रघंटा: देवी दुर्गा का तीसरा स्वरूप देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने का कार्य करती हैं। इनके पूजन से शुक्र ग्रह के दुष्प्रभाव कम होते हैं। माँ कूष्मांडा: भगवान सूर्य का पथ प्रदर्शन करती हैं देवी कुष्मांडा, इसलिए इनकी पूजा द्वारा सूर्य के अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है। माँ स्कंदमाता: देवी स्कंदमाता की पूजा से बुध ग्रह सम्बंधित दोष और नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं। माँ कात्यायनी: माता कात्यायनी के पूजन से बृहस्पति ग्रह से जुड़ें दुष्प्रभावों का निवारण होता हैं। माँ कालरात्रि: शनि ग्रह को माता कालरात्रि नियंत्रित करती हैं और इनकी पूजा से शनि देव के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं। माँ महागौरी: माँ दुर्गा का अष्टम स्वरूप देवी महागौरी की पूजा से राहु ग्रह सम्बंधित दोषों का निदान होता है। माँ सिद्धिदात्री: देवी सिद्धिदात्री द्वारा केतु ग्रह को नियंत्रित किया जाता हैं और इनके पूजन से केतु के बुरे प्रभावों का निवारण होता हैं। नवरात्रि से जुडी पौराणिक कथा पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, महिषासुर नाम का राक्षस ब्रह्माजी का परम भक्त था। उसने अपनी कठिन तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था कि कोई देव, दानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य उसको मार नहीं सकता था। ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद ही महिषासुर बहुत क्रूर और निर्दयी हो गया, तीनों लोकों में उसने आंतक मचा दिया। उसके आंतक से परेशान होकर देवी-देवताओं ने ब्रह्मा जी, विष्णु जी और महादेव के साथ मिलकर मां शक्ति से सहायता प्रार्थना की तब संसार को अत्याचार से मुक्त करने के लिए देवी दुर्गा प्रकट हुई जिसके बाद मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और अंत में दसवें दिन माता दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर दिया। उस दिन से ही युद्ध के नौ दिनों को बुराई पर अच्छाई की विजय के पर्व के रूप में मनाया जाता है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले,सर्वप्रथम रामेश्वरम में समुद्र के किनारे नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की थी। लंकापति रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने की कामना से शक्ति की देवी मां भगवती का पूजन किया था। श्रीराम की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उन्हें युद्ध में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था, जिसके बाद भगवान राम ने लंकापति रावण को युद्ध में पराजित कर उसका वध किया था, साथ ही लंका पर विजय प्राप्त की थी, उस समय से ही नौ दिनों को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। लंका पर विजय प्राप्त करने के दिन को दशहरे के रूप में मनाया जाता है।

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