केंद्रीय गृह मंत्रालय की वामपंथी उग्रवाद डिविजन ने सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में हाल ही में जानकारी दी कि पिछले दो साल के दौरान देश में सुरक्षाबलों ने 460 नक्सलवादी उग्रवादियों को मुठभेड़ के दौरान ढेर किया, जबकि 2018 से 2020 तक के इसी अंतराल के दौरान सुरक्षाबलों के 161 जवानों ने नक्सली हमलों के दौरान अपनी ड्यूटी निभाते हुए शहादत दी है।
पिछले दो साल के दौरान देश में सुरक्षा बलों ने 460 नक्सलवादी उग्रवादियों को ढेर किया है, जबकि 2018 से 2020 तक के इसी अंतराल के दौरान सुरक्षा बलों के 161 जवानों ने नक्सली हमलों के दौरान अपनी ड्यूटी निभाते हुए शहादत दी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) डिविजन ने सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में यह जानकारी दी है। दरअसल नोएडा के वकील व आरटीआई कार्यकर्ता रंजन तोमर ने गृह मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत एक जानकारी मांगी थी। तोमर ने 2018 से 2020 के दौरान ड्यूटी निभाते हुए शहीद होने वाले सुरक्षा बलों और इस दौरान मुठभेड़ में मारे गए वामपंथी उग्रवादियों का आंकड़ा पूछा था। मंत्रालय ने अपने जवाब में नवंबर, 2020 तक के आंकड़ों की जानकारी दी ह्रै।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इससे पहले सितंबर, 2020 में बताया था कि देश में वामपंथी उग्रवाद या नक्सलवाद से जुड़ी हिंसा लगातार घट रही है और अब इसका असर सिमटकर 46 जिलों तक ही रह गया है।केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा था कि देश के 11 राज्यों में 90 जिले वामपंथी उग्रवाद की चपेट में माने जाते थे और इन जिलों को गृह मंत्रालय की सुरक्षा संबंधी खर्च (एसआरई) योजना के दायरे में रखा गया है।गृह मंत्रालय ने 16 सितंबर, 2020 को एक अन्य जानकारी में बताया था कि वामपंथी उग्रवाद से जुड़ी हिंसा के दौरान आम नागरिकों और सुरक्षा बलों के जवानों की मौत का आंकड़ा साल 2010 में 1005 था, जो 2019 में घटकर महज 202 रह गया।
साल 2020 में भी 15 अगस्त तक महज 102 आम नागरिकों और जवान हिंसक गतिविधियों का शिकार हुए थे, जबकि 2019 में इसी तारीख तक यह आंकड़ा 137 मौत का था। साल 2017 में 263 और 2018 में 240 आम नागरिकों व जवानों ने शहादत दी थी।
15 साल में नक्सलियों ने मारे 8197 लोग
गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, साल 2004 से 2019 तक 15 साल के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में 8,197 लोग वामपंथी उग्रवाद का शिकार बने। इनमें शामिल आम नागरिकों में अधिकतर संख्या आदिवासियों की थीं, जिन्हें नक्सली संगठनों ने पुलिस का मुखबिर बताकर क्रूरता से टार्चर करने के बाद मौत के घाट उतार दिया था।