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छत्तीसगढ़रायगढ जिला

CG : स्टूडेंट्स को आदिवासी परंपराओं को निभाने की दी गई प्रेरणा

रायगढ़। जिले के सुदूर आदिवासी अंचल स्थित ग्राम जोबी के शहीद वीर नारायण सिंह शासकीय महाविद्यालय में बुधवार को एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें आदिवासी जाति, जनजातियों के योगदान एवं उनकी सांस्कृतिक धरोहरों, परंपराओं, विशेषताओं, रीति-रिवाज और त्योहारों पर विस्तार से चर्चा की गई। आमंत्रित अनुभवी वक्ताओं ने अपने ज्ञान का प्रकाश बिखेरा और अतिथियों ने आदिवासी परंपराओं को निभाने की प्रेरणा दी।

उद्घाटन प्राचार्य श्री रविंद्र कुमार थवाईत ने किया, उनके साथ अतिथियों और वक्ताओं ने मां सरस्वती की आराधना की। छात्राओं में कु. धनेश्वरी, रागिनी और प्रिंसी ने छत्तीसगढ़ महतारी की स्तुति कर सभी का अभिवादन किया। तदोपरांत थवाईत ने आगंतुकों का आभार प्रकट कर आदिवासी जातियों के योगदान और उनकी संस्कृति की महत्ता पर संक्षेप में टिप्पणी की। उनके बाद, विशेष रूप से प्रशिक्षण प्राप्त सहायक प्राध्यापक एवं कार्यक्रम संयोजक श्री योगेंद्र कुमार राठिया सहित जिला मुख्यालय से आमंत्रित विभिन्न वक्ताओं ने मंच संभाला और अपनी बातें रखीं। इस दौरान राठिया ने कंवर समाज के वीरों सहित 1855-56 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हुए संथाल विद्रोह के ऐतिहासिक घटनाक्रम, भील जनजाति के धनुष बाण कौशल और युद्ध कला की प्रसिद्धि पर जोशीला व्याख्यान दिया। बढ़ते क्रम में जिला मुख्यालय से विशेष रूप से आमंत्रित वक्ता, श्री सुरेंद्र पांडेय ने सभी जाति एवम जनजातियों को समतुल्य एवम महान बताते हुए एक पंक्ति में कहा की “जनजातियां कदापि पिछड़ी नहीं है, अपितु वे हमेशा से सभ्य समाज का प्रतिनिधित्व करती आ रही हैं।“ बाहर के लोग ही इन बातों को समझते नहीं, हमें मिल कर इन भ्रांतियों को दूर करना है। इस ओर उन्होंने इंदौर ओर नागपुर जैसी बड़ी नगरियों को जनजातीय समाज द्वारा बसाए जाने के उदाहरण भी प्रस्तुत कर अपने वक्तव्य की पुष्टि की। तदोपरान्त शासन द्वारा जाति एवं जनजातियों के लिए चलाई जा रही उज्जवला और प्रधानमंत्री आवास योजना आदि के बारे में विस्तार से समझाते हुए उन्होंने जरूरत, रूचि और जाति-जनजाति वर्ग के रहन सहन अभ्यास के तराजू में तोला। साथ ही ब्रिटिश शासन के दौरान एन्थ्रोपोलॉजी यानि जन्तु विज्ञान से आंकलन किए जाने जैसी भ्रांतियों पर खेद व्यक्त किया।

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