advertisement
एक्सक्लूसिवदेश

बेटे के जन्म से बढ़ता था प्रसाद का सूप, अब बेटियों के लिए भी हो रहा छठ

रुनकी-झुनकी बेटी मांगिला, पढ़ल पंडितवा दामाद…” वर्षों से यह गीत छठ पर हमसब गाती रही हैं। इक्का-दुक्का उदाहरण उस जमाने में भी था। मेरी मां के नाम से भी छठ का सूप था। अब भी है। मेरी मां ने मेरे नाम से सूप नहीं रखा। हां, ससुराल आई तो सास ने जरूर सूप कबूल लिया। वैसे, यह अपवाद जैसा ही है। हां, अब सब कुछ बदल रहा है। बेटियों के लिए भी सूप गछा (मन्नत कबूलती) जा रहा है। मतलब, अब बेटियों के भी मान पर लोग छठी मइया से सूप की मान्यता रखने लगे हैं।

छठ के नियम बहुत कठोर होते हैं। इन नियमों में कोई बदलाव नहीं होता। जिस घर में जो प्रसाद चढ़ता रहा है, वही चढ़ता है। जिस घर में जैसे सूप बढ़ता था, वैसे ही बढ़ता है। जो नई और अच्छी बात दिख रही है, वह यही है कि अब बेटियों के लिए सूप कबूलने की नई परंपरा स्थापित-सी हो रही है। लोग इस परंपरा को स्वीकार कर रहे हैं। एक-दूसरे को देखकर भी यह परंपरा बढ़ रही है। मेरे दामाद के घर में भांजी आई तो उन्होंने सुपती कबूला था। मेरी बेटी को संतान में परेशानी हो रही थी, मैंने उसके लिए सुपती कबूली। उसे बेटी हुई तो उसके लिए भी सूप गछा और पांच साल तक उसके सूप पर छठ में प्रसाद चढ़ा। यह सिर्फ मेरे घर में नहीं है।

मैं खुद व्रत करती हूं, इसलिए छठ घाट पर बहुत बात नहीं होती, लेकिन घाट से लौटते समय अलग-अलग जातियों की महिलाओं से बातचीत में पता चलता है कि फलां ने बेटी की नौकरी के लिए मन्नत मांगी तो दूसरे ने बेटी या पोती के जन्म होने पर ऐसी मन्नत पूरी होने पर छठ किया। 10 साल पहले इतना सुनने को नहीं मिलता था, लेकिन अब ढेरों ऐसे उदाहरण हैं।

जिन परिवारों में बेटियां जन्म नहीं ले रहीं, वहां लोग बेटी की चाहत के साथ मन्नत मांगते हैं। छठी मइया से मांगते हैं कि बेटी होती तो छठ करेंगे या बेटी की नौकरी हो तो इतने साल छठ करेंगे या उसके लिए सूप चढ़ाएंगे। ऊंची जातियों के परिवार में यह तेजी से बढ़ता दिख रहा है। निश्चित तौर पर यह अच्छा संदेश है, क्योंकि इससे विरोधाभास भी मिटता दिखता है और शायद छठी मइया भी यह पसंद करती हों। छठ ज्यादातर महिलाएं ही करती रही हैं और इसी की परंपरा में लड़कियों के लिए छठ नहीं होना चकित करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

छठ का प्रसाद बांस के सूप में चढ़ता है। बांस को हमारे यहां वंश का प्रतीक भी माना जाता है। बहुत सारे परिवारों में बेटे के जन्म के साथ ही सूप बढ़ जाता है। जब तक तीसरी पीढ़ी नहीं आ जाती, उस पुरुष के नाम पर छठ का सूप चढ़ता रहता है। कई परिवारों में तो हर जीवित पुरुष के नाम पर छठ का सूप चढ़ता है। जिन परिवारों में ऐसा नहीं भी है, वहां भी बेटे के जन्म की मन्नत पूरी होने पर छठ का सूप चढ़ाया जाता है। अब इसी तरह बेटियों के लिए भी हो रहा है तो सुनकर अच्छा लगता है।

सूप के मुकाबले बहुत छोटी होती है सुपती। दोनों हथेलियों को मिलाकर जो आकार बनता है, करीब-करीब उतना ही। लड़कियों के लिए पहले कहीं छठ की मन्नत मांगी जाती तो सुपती-मौनी ही कबूला जाता था। पता चल जाता था कि यह बेटी के लिए है। लेकिन, अब सूप भी लड़कियों के लिए चढ़ रहा है और यहां भी बेटा-बेटी का अंतर मिटता दिख रहा है।

advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button