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छत्तीसगढ़

व्यक्तिगत अपराध से ज्यादा बुरा है सामूहिक अपराध

अपराध कोई भी हो बुरा होता है,क्योंकि उससे किसी के साथ बुरा होता है।इसलिए आमतौर पर सब इसे बुरा मानते भी हैं।सब चाहते हैं कि अपराध नहीं होना चाहिए लेकिन कई कारणों से कम ज्यादा अपराध हर सरकार के शासन में, हर शहर, हर गांव में होते रहते हैं। कोई सरकार यह दावा नहीं कर सकती कि उसके समय में अपराध ही नहीं होते थे, किसी के शासन में कम अपराध होते हैं, तो किसी के समय ज्यादा अपराध होते हैं। इसके लिए सीधे तौर पर कोई भी सरकार दोषी नहीं होती है, यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार अपराध को होने दे रही है,वह चाहती है कि अपराध हो। सब सरकार अपराध को रोकने के लिए अपने तौर पर प्रयास करती हैं।

कई अपराध ऐसे होते हैं जो सीधे तौर पर सरकार व पुलिस रोक ही नहीं सकती। जैसे कोई किसी की हत्या करना चाहता है तो पुलिस उसे हत्या करने से रोक कैसे सकती है। पुलिस वहीं कुछ कर सकती है जहां पहले से उसके पास कोई अपराध होने की सूचना हो।जहां कोई सूचना नहीं है, वहां वह तो घटना के बाद ही पहुंच सकती है, गिरफ्तारी कर सकती है,जेल भेज सकती है। अब किसी गांव के युवक की लाश मिलती है।इसके लिए गांव के लोग गांव के ही किसी व्यक्ति को दोषी ठहरा दें,पूरा गांव खुद ही अदालत लगा ले, खुद ही फैसला कर दे कि फलां व्यक्ति दोषी है,उसके घर में आग लगा दे, घर के लोगों को जिंदा जलाने की कोशिश की जाए।एक आदमी की मौत हो जाए। पुलिस गांव पहुंचे तो उस पर पथराव किया जाए। यह तो सोचसमझ कर किया गया सामूहिक अपराध है। यह सच है कि एक आदमी को भीड़ ने जिंदा जला दिया,यह भी सच है कि पुलिस ने तीन लोगों को बचा लिया।इसके लिए तो पुलिस की सराहना करनी चाहिए कि पुलिस ने मौके पर पहुंच कर अच्छा काम किया।

हमें याद रखना चाहिए कि सामूहिक अपराध जहां कहीं भी होता है, वह व्यक्तिगत अपराध से ज्यादा भयंकर व ज्यादा बुरा होता है। व्यक्तिगत अपराध में बहुत से लोग किए गए अपराध को बुरा भी कहते हैं. लेकिन जब किसी गांव में सामूहिक अपराध किया जाता है तो उसे बुरा कहने या मानने वाला कोई नहीं होता है। सब जब अपराध कर रहे होते हैं तो वह सोचते हैं कि वह तो अच्छा कर रहे हैं। वह तो न्याय कर रहे हैं। साबित हुआ नहीं कि किसी ने किसी की हत्या की है, लेकिन भीड़ ने मान लिया कि लाश मिली है तो इसी ने हत्या की है। भीड़ ने फैसला कर लिया कि इसने हत्या की इसलिए इसे भी मार देना चाहिए, इसके परिवार को मार देना चाहिए।

कहा जाता है कि भीड़ के पास विवेक नहीं होता है, भीड़ में गुस्सा हो तो वह वही करती है जो वह करना चाहती है। वह किसी की नहीं सुनती है। कोई उसे बताए भी कि तुम बुरा कर रहे हो तो वह मानती नहीं है।कवर्धा जिले के लोहारडीह में तो भीड़ को कोई बताने वाला भी नहीं था कि आप लोग जो कर रहे हो,वह गलत कर रहे हो।लोहारडीह की आबादी ७०० है, कोई सौ दो सौ लोगों की भीड़ जब सामूहिक अपराध कर रही थी तो गांव में और ४००,५०० लोग थे लेकिन किसी ने भीड़ का विरोध नहीं किया। किसी ने भीड़ को समझाने व रोकने की कोशिश नहीं की। 

सामूहिक अपराध को सामूहिक विरोध से ही रोका जा सकता है लेकिन अक्सर होता है कि सामूहिक अपराध को सामूहिक विरोध किया ही नहीं जाता है। जब सामूहिक अपराध होता है तो बाकी सब लोग जो संख्या में ज्यादा भी होते हैं लेकिन कोई विरोध करने की हिम्मत ही नहीं कर पाता है। अपराध होने के बाद अपराध के कई कारण बताए जाते हैं कोई कहता है कि उनके बीच संपत्ति का विवाद था, उनके बीच पुरानी दुश्मनी थी,कोई कहता है पंचायत की राजनीति के चलते दोनों में बनती नहीं थी। कोई कहता है गांव में अवैध कब्जों को लेकर गांव के लोग उपसरपंच से नाराज थे।

 देखा जाए तो लोहारडीह की घटना के मूल में विवाद भी है, गुस्सा भी है। लाश मिली तो यह गुस्सा का लावा जो पता नहीं कब से लोगों के भीतर धधक रहा था,वह फूटा।परिणाम क्या हुआ है सामूहिक अपराध का। गांव के ६३ लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है, १५० से ज्यादा घरों के लोग गांव छोड़कर भाग गए है। अगर दोनों परिवार के विवाद के गांव के लोगों ने ही बैठक बुलाकर निपटा दिया होता तो आज गांव के लोगों को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। 

गांव की कोई भी समस्या है तो उसे निपटाने की व्यवस्था गांव के स्तर पर की जानी चाहिए। ऐसी व्यवस्था नहीं है तो गांव के लोगों को गांव में शांति व सद्भाव के लिए ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि गांव में लोग सामूहिक अपराध न कर सकें।गांव में सामूहिक अपराध हो तो पुलिस आकर नहीं रोक सकती, गांव के लोग चाहें तो रोक सकते है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह विपक्ष में है तो वह तो राजनीति करेगी ही क्योंकि जो विपक्ष में होता है,वह तो जनता को बताएगा कि सरकार कहां कहां विफल है।जनता को पता है कि कांग्रेस सत्ता में थी तो भी अपराध होते थे और तब भाजपा यही करती थी जो आज कांग्रेस कर रही है।

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