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रायपुर : जल संरक्षण, संवर्धन एवं पुनर्भरण सहित अनेक पहलुओं पर चर्चा पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक : मंत्री केदार कश्यप

छत्तीसगढ़ सरकार के जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप आज नई दिल्ली के भारत मण्डपम में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित 8वें भारत जल सप्ताह कार्यक्रम में शामिल हुए। मंत्री कश्यप ने इस मौके पर छत्तीसगढ़ में किए गए कार्यों को अन्य देशों से आए प्रतिनिधियों के साथ साझा किया और जल प्रबंधन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय अनुभव प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि कार्यशाला के माध्यम से जल संरक्षण, संवर्धन एवं पुनर्भरण बल्कि पर्यावरण, कृषि और विकास से जुड़े अनेक पहलुओं पर चर्चा भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक हैं।

जल संसाधन मंत्री कश्यप ने 8वें इंडिया वॉटर वीक के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि जल के बिना किसी भी जीवन की कल्पना असंभव है। भारतीय सभ्यता में जीवनकाल में और जीवन के बाद की यात्रा में, जल के महत्व को बताया गया है। इसके अनुसार पानी के समस्त स्रोतों को पवित्र माना गया है। हर धार्मिक स्थल, नदी के तट पर स्थित होते है। ताल, तलैया और पोखरों का स्थान समाज के लिए उपयोगी होता है। परंतु वर्तमान समय पर नजर डालें तो, कई बार स्थिति चिंताजनक लगती है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण हमारे नदियों और जलाशयों की स्थिति खराब हो रही है, गांवों के पोखर सूख रहे हैं, कई स्थानीय नदियां विलुप्त हो गयी हैं। कृषि और उद्योगों में जल का दोहन जरूरत से ज्यादा हो रहा है। धरती पर पर्यावरण संतुलन बिगड़ने लगा है, मौसम का मिजाज बदल रहा है। मानसून में कही अतिवृष्टि हो रही है तो कही सूखे जैसी स्थिति है।

मंत्री कश्यप ने कहा कि राज्य में सिंचाई विकास का इतिहास बहुत पुराना है। जांजगीर-चांपा जिले में अकलतरा के पास कोटगढ़ में कलचुरी राजा द्वितीय के सामन्त वल्लभ राज (1120 ई.) ने वल्लभसागर नामक तालाब बनवाया था। 1158 ईस्वी में रतनपुर से लगभग 3 किलोमीटर पूर्व में खड्ग तालाब बनाया गया था। इसी प्रकार समकालीन शासकों द्वारा बहुनी, शिवरीनारायण, खरौद एवं सरौद में सुन्दर तालाब खुदवाये गये थे। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विशेषकर धान उत्पादक क्षेत्र अर्थात रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग इत्यादि क्षेत्रों में जलाशयों एवं नहरों का निर्माण कर सिंचाई कार्य प्रारंभ किया गया। रायपुर जिले में पं. लखन लाल मिश्र जलाशय (पिन्ड्रावन जलाशय) एवं कुम्हारी जलाशय वर्ष 1911 में निर्मित हुए तथा दुर्ग जिले का तान्दुला जलाशय वर्ष 1912 में पूर्ण हुआ। एशिया महाद्वीप में अपने तरह का विशिष्ट साइफन स्पिलवे युक्त मुरूमसिल्ली बांध का निर्माण वर्ष 1923 में हुआ। वर्ष 1927 छत्तीसगढ़ के लिये मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि इसी वर्ष रायपुर जिले में महानदी नहर प्रणाली पूरी हुई। जिला बिलासपुर में खारंग एवं मनियारी जलाशय वर्ष 1931 में निर्मित हुए।

जल संसाधन मंत्री कश्यप उद्बोधन के दौरन बताया कि छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है जहां 80 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर आधारित है। प्रदेश में कुल बोया गया क्षेत्र 56.83 लाख हेक्टेयर है तथा निर्मित सिंचाई लगभग 39 प्रतिशत ही है। प्रदेश में वर्ष 2023 की स्थित्ति में 21.57 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का निर्माण किया जा चुका है।

मंत्री कश्यप ने कहा कि जल संसाधन विभाग आने वाले समय में राज्य की बढ़ती हुई पेयजल एवं सिंचाई आवश्यकताओं के प्रति पूरी तरह सजग है। राज्य में जल के समुचित उपयोग के लिये भी भविष्य की योजनाओं के निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके दृष्टिगत नयी परियोजनाओं के सर्वेक्षण, रूपांकन तथा क्रियान्वयन के लिये प्रयास जारी है। जिससे अब तक व्यर्थ बह जाने वाले वर्षा जल को, जल की कमी वाले क्षेत्रों में सिंचाई पेयजल, निस्तारी, उद्योग आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति में उपयोग कर राज्य की बेहतरी एवं समृद्धि के उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।

मंत्री कश्यप ने कहा कि छत्तीसगढ़ में नदी जोड़ो अभियान के अंतर्गत अहिरन खारंग लिंक परियोजना (पेयजल हेतु), सिकासार-कोडार इंटर लिंकिंग परियोजना, इन्द्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना का सर्वेक्षण, छपराटोला जलाशय नदी पुनर्जीवन हेतु परियोजना एवं पैरी-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना के निर्माण हेतु कार्यवाही की जा रही है।

वर्तमान में राज्य में जल उपयोग दक्षता को बढ़ाने हेतु सूक्ष्म सिंचाई पद्धति से सिंचाई किये जाने हेतु परियोजनाओं का निर्माण कार्य प्रगति पर है। भविष्य में राज्य में नवीनतम सिंचाई पद्धति एवं तकनीकियों का उपयोग किया जा कर कम पानी एवं लागत में अधिक उत्पादन हेतु सिंचाई परियोजनाओं का क्रियान्वयन के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है।

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