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छत्तीसगढ़

CG : खतरे में है आदिवासी मासूमों का जीवन, जर्जर भवन में रहने को मजबूर…

बीजापुर । आदिवासियों के विकास के लिए बने अलग विभाग द्वारा लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही की हदें पार हो गई हैं।

बीजापुर जिले के भैरमगढ़ विकासखंड के कुटरू से लगे ग्राम करकेली में स्थित बालक आश्रम भवनों की स्थिति बेहद खराब है। इस आश्रम को बने कुछ ही साल हुए हैं, लेकिन निर्माण में अनियमितता के चलते यह जर्जर हो चुका है। बाहर से अच्छा दिखने वाला छात्रावास अंदर से बेहद खराब है। दीवारों में दरारें, छत की प्लास्टर उखड़कर नीचे गिरती रहती है, फर्श टूटा हुआ है और बारिश के दिनों में हालात और भी खराब हो जाते हैं। आश्रम के लगभग सभी कमरों में पानी टपकता है और बच्चों को जान जोखिम में डालकर रहना पड़ता है, लेकिन विभाग की ओर से कोई पहल नहीं की जा रही है।

रहने लायक नहीं हैं कमरे
आदिमजाति कल्याण विभाग द्वारा निर्मित इस छात्रावास में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चे निवासरत हैं। 50 सीटर आश्रम भवन की हालत इतनी खराब है कि कई कमरे रहने लायक नहीं बचे हैं। जो कमरे ठीक हैं उनमें बच्चों को रखा जा रहा है, लेकिन उसमें भी हादसे की आशंका बनी रहती है। शिक्षिका के अनुसार, सही सलामत बचे कमरों में कक्षाएं लगाई जाती हैं। भवन की खराब स्थिति को लेकर कई बार शिकायत की गई, लेकिन बजट का अभाव बताया जाता है।

किचन शेड दयनीय स्थिति में
करकेली में संचालित बालक आश्रम के किचन शेड की स्थिति भी बहुत खराब है। शेड के टिन टूटे हुए हैं और बारिश के दिनों में किचन शेड पानी से भर जाता है। बच्चों को गीले फर्श पर बैठने को मजबूर होना पड़ता है।

अधिकारी दौरे के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं

आश्रमों की देखरेख के लिए नियुक्त अधिकारी निरीक्षण के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं। इन अधिकारियों को आश्रम की सुविधाओं और असुविधाओं की जानकारी लेकर उच्चाधिकारियों को सूचित करना होता है, लेकिन वे अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाते। इसी कारण जर्जर भवन, टपकती छत और इसकी बदहाल स्थिति नजरअंदाज की जा रही है।

बिना बिजली के रहने को मजबूर मासूम बच्चे
आश्रम में बिजली की व्यवस्था और वैकल्पिक तौर पर सोलर से संचालित इन्वर्टर हैं, लेकिन जब मीडिया की टीम करकेली स्थित बालक आश्रम पहुंची तो वहां बिजली नहीं थी और सोलर सिस्टम भी खराब पड़ा था। आश्रम में छोटे-छोटे बच्चों को अंधेरे में रहना पड़ता है और कभी भी हादसे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

जर्जर भवन की हालत को छोड़ कमाई वाला सामान दे रहा विभाग
आदिवासी विकास विभाग द्वारा जर्जर भवनों की मरम्मत छोड़कर फिजूलखर्ची में धन लगाया जा रहा है। टपकती छत, खंडहर शौचालय, खराब बिजली व्यवस्था, खंडहर किचन शेड की मरम्मत की बजाय विभाग अनावश्यक सामान बांटने में मशगूल है। विभाग को फिजूलखर्ची छोड़कर भवन मरम्मत पर ध्यान देना चाहिए ताकि मासूम बच्चों को कोई तकलीफ न हो।

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