लॉकडाउन में जीना कैसे है? मनोचिकित्सक ऐसे दे रहे जवाब
अचानक से पूरी दुनिया में एक वायरस का अटैक और हर तरफ से नेगेटिव खबरें. फिर सरकारों के फैसले कि लोग घरों में लॉकडाउन रहें. कुछ दिनों के लॉकडाउन के बाद फिर इसकी अवधि बढ़ जाना. लोगों के लिए ये सब अप्रत्याशित-सा है. किसी ने ऐसे किसी दिन की कल्पना नहीं की होगी कि उसकी गति में अचानक इस तरह विराम लग जाएगा. IHBAS (Institute of Human Behaviour and Allied Sciences) के मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि दूसरी बार लॉकडाउन बढ़ने के बाद अब लोगों में मानसिक तनाव बढ़ने लगा है. मनोचिकित्सकों के पास आने वाले कॉल्स में 80 प्रतिशत लोग पूछ रहे हैं कि लॉकडाउन में जीना कैसे है? आइए जानें इसका जवाब. डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि मनोचिकित्सकों के लिए भी ये सवाल है कि लॉकडाउन में जीना कैसे है, एकदम नया और अलग है. मनोचिकित्सकों के पास इसका जवाब बहुत पारंपरिक है कि आप खुद को बिजी रखिए, रचनात्मक कार्य कीजिए. लेकिन हकीकत ये है कि इस जवाब से लोगों को संतुष्टि नहीं मिल पा रही है. ये समस्या सबसे ज्यादा उन लोगों के साथ है जो अकेले रह रहे हैं, या वो जो पहले से तनाव में जी रहे हैं. उन अकेले रह रहे लोगों को पहले डॉक्टर ने सलाह दे रखी है कि आप लोगों से मिले-जुलें, और खुद को व्यस्त रखें. अब अचानक उन्हें घर में बंद होना पड़ा है. उन्हें न रचनात्मक कार्य भा रहा है और न ही अकेलेपन से वो लड़ पा रहे हैं. डॉ ओमप्रकाश की मानें तो मनोचिकित्सक इस सवाल के ऐसे जवाब खोज रहे हैं, जिसे लोग समझकर अपना सकें. उन जवाबों में एक जवाब ये है कि आप हालात को अपना लें. मनोविज्ञान के क्षेत्र में एडॉप्ट थ्योरी उन लोगों पर लागू की जाती है, जिनके हालात अचानक बदल जाते हैं. कभी ट्रांसफर होने पर या कभी अचानक बीमार होने पर घर में अकेला रहना पड़ता है. डॉ कहते हैं कि अगर लोग इस तरह सोचें कि उनके साथ बहुत बुरा नहीं हुआ है, जो कि बर्दाश्त के काबिल न हो तो वो लॉकडाउन को जी सकते हैं.जो नौकरीपेशा लोग संयुक्त परिवारों में रहने वाले हैं, उनके सामने भी ये समस्या कम नहीं है. कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें वर्क फ्रॉम होम की सहूलियत मिली है, लेकिन कुछ को ये सुविधा भी नहीं है. उनके सामने नौकरी जाने की फिक्र भी है. समस्या दोनों के सामने है, एक वर्क फ्रॉम होम से सामंजस्य नहीं कर पा रहा. वहीं दूसरा नौकरी जाने के डर के चलते परिवार के साथ रहकर भी अकेला महसूस कर रहे हैं.ऐसे लोगों के लिए डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि जब इस तरह की स्थितियों के बारे में लोग सवाल करें तो मनोचिकित्सक का दायित्व है कि उनसे ज्यादा परिवार की काउंसिलिंग की जाए. ये वो वक्त है जब परिवार के लोग सहयोगी की भूमिका में आएं. वर्क फ्रॉम होम में या जॉब फियर से किसी को निकलने में घर में वो ही व्यक्ति मदद कर सकता है जो परिवार में उसका सबसे ज्यादा करीबी हो.
लेकिन इन सबके बावजूद अगर तनाव शरीर में अपने लक्षण दिखाने लगे तो इसे गंभीरता से लें और तत्काल मनोचिकित्सक से सलाह लें. ऐसे हालात में मनोचिकित्सक उन्हें काउंसिलिंग के साथ ही कुछ दवाओं से भी मदद कर सकते हैं.
ये होते हैं
डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि इन हालातों में जीने का सबसे बड़ा नुस्खा ये है कि कोशिश करें कि नकारात्मकता से दूर रहें. अकेले हैं तो ऐसे लोगों से संपर्क में रहें जो सकारात्मक हों, आपसे प्रेम करते हों, आपके मित्र सहयोगी या परिवार का कोई भी व्यक्ति हो सकता है. समय मिलने पर टीवी पर सिर्फ न्यूज देखने के बजाय आप जानकारीपरक प्रोग्राम या फिल्में देख सकते हैं. इसके अलावा आप अगर घर में रहते हुए भी किसी रूटीन को फॉलो करें तो ये आपके लिए सबसे मददगार हो सकते हैं. मसलन पढ़ने, खाने, टीवी देखने, लोगों से बात करने, घर का काम करने से लेकर सोने तक का एक टाइमटेबल बनाएं और उसे फॉलो करें. मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि आप अपने रूटीन में एक्सरसाइज को जरूर शामिल करें. साथ ही मन में ये हर वक्त ये बनाए रखें कि ये समय बदल जाएगा और सबकुछ सामान्य हो जाएगा. हालात कभी एक से नहीं रहते.रात में नींद न आना, या बीच-बीच में नींद टूट जाना
शरीर में कंपन महसूस होना, हृदय गति कम या ज्यादा होना
घबराहट, बेचैनी, भूख न लगना आदि लक्षण भी हो सकते हैं