70 और 80 में हिंदी फिल्मों का वो दौर आया जब नायिकाओं के साथ खलनायिकाओं का भी अहम रोल होने लगा। इसी दौर में एंट्री हुई अभिनेत्री बिंदु की। उन्होंने कुछ ही वक्त में अपनी अलग पहचान बना ली। 17 अप्रैल 1941 को बिंदु का जन्म गुजरात में हुआ था।
मोना डार्लिंग बनकर बिंदु ने हिंदी सिनेमा को ऐसी खलनायिका दी जिसकी पूछ हीरोइन से ज्यादा थी। बिंदु ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1962 में आई फिल्म ‘अनपढ़’ से की थी। इसके बाद इत्तेफाक में उन्होंने शानदार काम किया। उनकी ये दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुईं।
जब बिंदु 13 साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया। घर में बड़ी होने के चलते उनके कंधों पर घर का भार आ गया। बिंदु को अपने पड़ोस में रहने वाले चंपकलाल जावेरी से प्यार हो गया, जिसके बाद दोनों ने शादी रचा ली।
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बिंदु ने बताया था कि उन्हें रोल ही वैंप के मिले। बिंदु ने कहा था, “जब मैंने शुरुआत की तो खलनायिका का दौर था। मैं बनना हीरोइन चाहती थी, लेकिन किसी ने कहा कि मैं बहुत पतली हूं। हिंदी ठीक से नहीं बोल सकती। बहुत लंबी हूं फिर वही मेरी कमियां लोगों को पसंद आई। मैंने शुरुआत की फिल्म ‘दो रास्ते’ के साथ और मैं बन गई विलेन।” 1970 में आई फिल्म ‘कटी पतंग’ के गाने ‘मेरा नाम है शबनम’ से बिंदु रातों रात आइटम क्वीन बन गईं।
फिल्मों में निगेटिव किरदार करने का बिंदु के निजी जीवन पर भी असर पड़ा। उन्होंने बताया कि ‘मैंने फिल्मों में बुरी मां की कई भूमिकाएं निभाई हैं। मेरी बहन के बच्चे जब भी मेरे साथ फिल्म देखने जाते थे तो वह फिल्म देखते वक्त स्क्रीन में देखते थे फिर मेरी तरफ देखते थे और कहते थे, बिंदु आंटी आप हमारे साथ तो ऐसा नहीं करती फिर फिल्म में ऐसा क्यों करती हो? यही नहीं जब मैं सिनेमाहॉल में फिल्म देखने जाती थी तो लोग चिल्ला पड़ते थे कि मैं आई हूं तो कोई गड़बड़ तो होगी।’ इतना ही नहीं बिंदु यह तक कहती थीं कि अपने किरदार की वजह से मुझे गालियां भी खानी पड़ती थीं।