advertisement
देशराजनीति

सामना की सम्‍पादकीय- जया बच्चन की पीड़ा… झांज और करताल

हिंदुस्थान का सिनेजगत पवित्र गंगा की तरह निर्मल है, ऐसा दावा कोई नहीं करेगा। लेकिन जैसा कि कुछ टीनपाट कलाकार दावा करते हैं कि सिनेजगत ‘गटर’ है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। श्रीमती जया बच्चन ने संसद में इसी पीड़ा को व्यक्त किया है। ‘जिन लोगों ने सिनेमा जगत से नाम-पैसा सब कुछ कमाया। वे अब इस क्षेत्र को गटर की उपमा दे रहे हैं। मैं इससे सहमत नहीं हूं।’ श्रीमती जया बच्चन के ये विचार जितने महत्वपूर्ण हैं, उतने ही बेबाक भी हैं। ये लोग जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं। ऐसे लोगों पर जया बच्चन ने हमला किया है। श्रीमती बच्चन सच बोलने और अपनी बेबाकी के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक और सामाजिक विचारों को कभी छुपाकर नहीं रखा। महिलाओं पर अत्याचार के संदर्भ में उन्होंने संसद में बहुत भावुक होकर आवाज उठाई है। ऐसे वक्त जब सिनेजगत की बदनामी और धुलाई शुरू है, अक्सर तांडव करनेवाले अच्छे-खासे पांडव भी जुबान बंद किए बैठे हुए हैं। मानो वे किसी अज्ञात आतंकवाद के साए में जी रहे हैं और कोई उन्हें उनके व्यवहार और बोलने के लिए परदे के पीछे से नियंत्रित कर रहा है। परदे पर वीरता और लड़ाकू भूमिका निभाकर वाहवाही प्राप्त करनेवाले हर तरह के कलाकार मन और विचारों पर ताला लगाकर पड़े हुए हैं। ऐसे में श्रीमती बच्चन की बिजली कड़कड़ाई है। मनोरंजन उद्योग रोज पांच लाख लोगों को रोजगार देता है। फिलहाल अर्थव्यवस्था उद्ध्वस्त हो चुकी है और जब ‘लाइट, कैमरा, एक्शन’ बंद है, लोगों का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाने के लिए हमें (मतलब बॉलीवुड को) सोशल मीडिया पर बदनाम किया जा रहा है। ऐसा जया बच्चन ने कहा है। कुछ अभिनेता-अभिनेत्रियां ही पूरा बॉलीवुड नहीं है। लेकिन उनमें से कुछ लोग जो अनियंत्रित वक्तव्य दे रहे हैं, यह सब घृणास्पद है। सिनेजगत के छोटे-बड़े हर कलाकार या तकनीशियन मानो ‘ड्रग्स’ के जाल में अटके हुए हैं, २४ घंटे वे गांजा और चिलम पीते हुए दिन बिता रहे हैं, ऐसा बयान देनेवालों की ‘डोपिंग’ टेस्ट होनी चाहिए, क्योंकि इनमें से बहुतों के खाने के और तथा दिखाने के और दांत हैं। हिंदुस्थानी सिनेजगत की एक परंपरा और इतिहास है। यह मायानगरी होगी लेकिन इस मायानगरी में जैसे ‘मायावी’ लोग आए और चले गए, उसी प्रकार कई संत-सज्जन भी थे ही। जिन दादासाहेब फाल्के ने हिंदुस्थानी सिनेजगत की नींव रखी, वह महाराष्ट्र के ही हैं। दादासाहेब फाल्के ने बहुत मेहनत करके इस साम्राज्य को मूर्त रूप दिया। ‘राजा हरिश्चंद्र’ और ‘मंदाकिनी’ जैसी ‘मूक फिल्मों’ से हुई हिंदी सिनेजगत की शुरुआत आज जिस शिखर तक पहुंची है, वो कई लोगों की मेहनत के कारण ही। जो अपनी प्रतिभा और कला दिखाएगा, वही यहां टिकेगा। एक जमाना सहगल और देविका रानी का था। आज भी अमिताभ बच्चन महानायक पद पर विराजमान हैं। कभी उस जगह पर राजेश खन्ना थे। धर्मेंद्र, जीतेंद्र, देव आनंद, पूरा कपूर खानदान, मा. भगवान, वैजयंती माला से लेकर हेमा मालिनी और माधुरी दीक्षित से लेकर ऐश्वर्या राय तक, एक से एक बढ़िया कलाकारों ने यहां योगदान दिया है। बॉक्स ऑफिस को हमेशा चलायमान रखने के लिए आमिर, शाहरुख और सलमान जैसे ‘खान’ लोगों की भी मदद हुई ही है। ये सारे लोग सिर्फ गटर में लेटते थे और ड्रग्स लेते थे, ऐसा दावा कोई कर रहा होगा तो ऐसी बकवास करनेवालों का मुंह पहले सूंघना चाहिए। खुद गंदगी खाकर दूसरों के मुंह को गंदा बताने का काम चल रहा है। इस विकृति पर ही जया बच्चन ने हमला किया है। हमारे सिनेमा के कलाकार सामाजिक दायित्व को भी पूरा करते रहते हैं। युद्ध के दौरान सुनील दत्त और उनके सहयोगी सीमा पर जाकर सैनिकों का मनोरंजन करते थे। मनोज कुमार ने हमेशा ‘राष्ट्रीय’ भावना से ही फिल्में बनार्इं। कई कलाकार संकट के समय अपनी जेब से मदद करते रहते हैं। राज कपूर की हर फिल्म में सामाजिक दृष्टिकोण और समाजवाद की चिंगारी दिखती थी। आमिर खान की फिल्में भी उसी तरह की हैं। ये सारे लोग नशे में धुत्त होकर यह राष्ट्रीय कार्य कर रहे हैं। ऐसे गरारे करना देश का ही अपमान है। कई कलाकारों ने आपातकाल के दौरान की मनमानी के विरोध में आवाज उठाई और उन्हें उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। आज भी सिनेजगत में एक हलचल साफ दिख रही है। आज कई कलाकार सत्तापक्ष के मंत्री और सांसद हुए दिख रहे हैं। इसलिए उनकी मजबूरी समझनी चाहिए। सत्ता और सत्य के बीच में एक खाई होती है। सिनेजगत से ईमान रखना होगा तो सत्ताधारियों की ओर से टपली मारी जाएगी। इसलिए सूर्य पश्चिम से उगता है, ऐसा प्रचार करना ही उनका धर्म बन जाता है। फिल्म जगत ‘गटर’ बन चुका है, ऐसा बोलनेवालों ने अपनी लाज बेच दी। लेकिन उनके साथ सत्ताधारियों की ‘झांज’ होने के कारण इन लोगों को भी करताल बजानी पड़ती है। फिर ये सिनेजगत से बेईमानी हो तो भी चलेगा। हिंदी सिनेमा जगत वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हो चुका है। हॉलीवुड के बराबर तुम्हारे बॉलीवुड का नाम लिया जाता है। लेकिन उद्योग क्षेत्र में जैसे टाटा, बिरला, नारायणमूर्ति और अजीम प्रेमजी हैं, वैसे ही नीरव मोदी और माल्या भी हैं। सिनेजगत के बारे में भी ऐसा ही कहना होगा। सब के सब गए गुजरे हैं, ऐसा कहना सच्चे कलाकारों का अपमान साबित होता है। जया बच्चन ने इसी आवाज को उठाकर सिनेमाजगत की नींद तोड़ी है। इससे कितने लोगों का कंठ फूटेगा, देखते हैं। सामना

advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button