जो शुभम बचपन में पर्दे की आड़ लेकर छिप जाता था, मां उसे इधर-उधर ढूंढते फिरती और फिर दिखावटी गुस्सा कर कहती चल अब बाहर आ ही जा। बहुत हो गई लुकाछिपी। वह शुभम आज चिरनिद्रा में है। पर, मां पुष्पा का दिल अब भी मान नहीं पा रहा कि बेटा इस दुनिया में नहीं रहा।
यही वजह है कि शनिवार को कई बार वह अपने लाल की वर्दी, कपड़े, तितर-बितर पड़े सामान को अचानक सहेजने लग रही थीं। बीच-बीच में जोर से चीख उठ रही थीं, बोलने लगती थीं, शुभम अब आ भी जा…दिल बैठा जा रहा है। परिजन और पड़ोस की महिलाएं बड़ी मुश्किल से उन्हें संभाल पाईं।
शुक्रवार की देर रात कैप्टन शुभम की पैतृक गांव कुआंखेड़ा में अंत्येष्टि हुई। वो कभी न जागने वाली नींद में सो गए। शहीद कैप्टन के घर प्रतीक एंक्लेव में शनिवार को भी गमगीन माहौल रहा। पूरे दिन सांत्वना देने वालों का तांता लगा रहा। सभी अपने-अपने तरीके से कैप्टन शुभम के बचपन से अब तक की यादों को साझा कर रहे थे।
परिजन ने बताया कि शुभम की मां पुष्पा देवी पूरी रात नहीं सोईं। बेटे की तस्वीर को सीने से लगाए रखा। वर्दी को भी निहारती रहीं। बार-बार इधर-उधर झांककर आवाज लगाने लगती हैं। मन नहीं मानता तो पहली मंजिल पर बने शुभम के कमरे में जा पहुंचतीं। उनकी वर्दी को संवारते हुए हैंगर पर टांगती। पियानो, हारमोनियम को स्पर्श कर शुभम को महसूस करतीं हैं। शुभम…शुभम की आवाज लगाकर फफकने लगती हैं।

शुभम की चचेरी बहन डॉ. अनीता गुप्ता ने बताया कि शुभम के बिना घर के सभी सदस्य व्याकुल हैं। चाची की हालत देखी नहीं जा रही। ऐसे में शुभम के सामान को उनकी नजरों से बचाकर रख रहे हैं। मां का यह रूप देख फिल्म रंग दे बसंती का ये गीत, ‘लुकाछिपी बहुत हुई…सामने आ जा ना, कहां-कहां ढूंढ़ा तुझे थक गई है अब तेरी मां…, आ जा सांझ हुई, मुझे तेरी फिकर, धुंधला गई देख मेरी नजर, आ जा ना…मां और बेटे के लाड-प्यार और वेदना को जीवंत करती दिखी।

पापा, टेंशन क्यों लेते हो…वहां तो सबकी डेट फिक्स है
दूसरी ओर तख्त पर गुमसुम बैठे पिता बसंत गुप्ता भी अपने बेटे की तस्वीर को टकटकी लगाए निहारते दिखे। श्रद्धांजलि देने आए लोगों से नम आंखों से मिलते। बेटे की बहादुरी का जिक्र होने पर उन्होंने बताया कि बीते 25 जून को बेटा 10 दिन की छुट्टी पर आया था। धारा 370 हटने के बाद की जम्मू-कश्मीर के हालात पर चर्चा हुई।

मैं उससे कहता कि बेटा ऑपरेशन में विशेष सावधानी बरतना। इस पर वह कहता कि पापा…टेंशन क्यों करते हो, ऊपरवाले के यहां सबकी डेट फिक्स है। जिसकी जितनी सांस हैं, उतनी हीं मिलेंगी। इतना जरूर है पिताजी…दुश्मनों से लड़ने के लिए आपका बेटा सबसे आगे होगा।
शुभम की चचेरी बहन अनुष्का ने बताया कि 25 जून को भइया छुट्टी पर आए थे और 5 जुलाई को ड्यूटी पर गए। जाते वक्त यही बोले कि छुटकी दिवाली एक साथ मनाएंगे। लेकिन वे दिवाली पर छुट्टी नहीं आ सके। इतना कहते ही उनकी आंखें भर आईं। छोटे भाई ऋषभ की आंखें कमरे में रखे पियानो और हारमोनियम को देखकर छलक पड़ीं। सुबकते हुए कहा कि भाई और मैं दोनों एक साथ गाते-बजाते थे। अब मैं अकेला कैसे गाऊंगा-बजाऊंगा।