advertisement
छत्तीसगढ़रायपुर जिला

रायपुर : मैत्री वही जो एक-दूसरे को आगे बढ़ाने का प्रयास करे : प्रवीण ऋषि

लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के दौरान उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि के मुखारविंद से धर्मसभा में उपस्थित श्रावक महावीर के अंतिम वचनों का श्रवण कर रहे हैं। 31 अक्टूबर को श्रुतदेव आराधना के आठवें दिवस उपाध्याय प्रवर ने अध्याय 14 एवं 15 आध्यात्मिक संबंध जागृति का सूत्र बताया। आराधना से पहले लाभार्थी परिवार पुखराजजी मिश्रीलालजी लोढ़ा परिवार डौंडी लोहारा तथा सहयोगी लाभार्थी परिवार हैं कमलचंदजी आशीष कुमारजी जैन परिवार ने श्रावकों का तिलक लगाकर उनका स्वागत किया। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जो विश्व के लिए रहस्य है, वह तीर्थंकर परमात्मा के लिए रहस्य नहीं है। ज्ञान से संपन्न जगत के सामने जीवन की ज्योति रखने वाले प्रभु ने जीवन की एक अनूठी देशना कहते हैं कि कैसे और कौन से मैत्री के संबंध हैं जो सिद्धि पथ पर ले जाते हैं। एक दूसरे के हित की कामना करने वाले छह मित्र थे। वे स्वयं की गवेषणा नहीं करते थे, स्वयं के हित की खोज नहीं करते थे। एक दूसरे का ही हित देखते थे, एक दूसरे की साधना को शिखर पर पहुंचाने का प्रयास करते थे। मैत्री वही होती है जो एक दूसरे को आगे बढ़ने में सहयोग करे। छह मित्रों में दो मित्र साधना के पलों में पारदर्शिता नहीं रखते थे। मंगल भावना से भी कुछ छिपा जाते थे। और इसके कारण उन्होंने श्रीवेद का बंद किया। साधना पूर्ण कर छहों मित्र देवलोक गए। 4 मित्रों ने अपना आयुष पूर्ण कर पहले जन्म लिया। रानी कमलावती, इषुकार राजा, भृगुपुरोहित और उनकी पत्नी यशा के रूप में। दो देव अपना आयुष दीर्घ होने के कारण देवलोक में ही हैं,और यहां उन्हें बोध हुआ कि पिछले जन्म में हम छह दोस्तों ने एक साथ साधना की थी।

उपध्याय प्रवर ने कहा कि हमारी साधना बचपन में ही शुरू हो जाए, ऐसा परिवार हमें मिलना चाहिए। दोनों देवों ने देखा कि हमारा जन्म कहां होने वाला है, तो पता चला कि उन्ही के पिछले जन्म के मित्र जो इस जन्म में भृगुपुरोहित और उनकी पत्नी यशा के रूप में जन्मे हैं, उनके पुत्र के रूप में उनका जन्म होगा। उन्हें ख़ुशी हुई कि पूर्व परिचित के आंगन में जन्म हो रहा है, लेकिन यह जानते थे कि उन्हें यह बोध नहीं है कि वे पिछले जन्म में दोस्त थे और एक साथ साधना की थी। साधना की विस्मृति साधना को समाप्त कर देती है। जो याद रह जाती हैं वह जिन्दा रहती है, जो याद नहीं रहती वह समाप्त हो जाती है। उसे जगाना पड़ता है। उन्हें लगा कि गर्भवास एक ऐसी स्थिति है जहां सारी स्मृतियाँ ओट में चली जाती है। उन्हें लगा कि अपने भावी माता-पिता को आगाह कर दें। वे ज्योतिष के रूप में भृगु पुरोहित के पास पहुंचे। दो ज्योतिषों को देखकर भृगु पुरोहित ने उन्हें प्रणाम किया, और पूछा कि संतान कब होगी? उन्होंने कहा कि आपके आँगन में दिव्य संतानें जन्म लेंगीं, जो भगवान बनेंगीं और तुम्हे भी उसी राह पर ले जायेंगीं। याद रखना कि वे जब संयम की राह पर चलेंगे तो उनका सहयोग करना।

भृगु पुरोहित ने उस समय तो हाँ कर दी, लेकिन बच्चों के जन्म के बाद उनके मोह में यह भूल गए। उन्हें डर सताने लगा कि मेरे बच्चे दीक्षा लेंगे तो हम कैसे जी पाएंगे। माता पिता ने बच्चों के मन में साधुओं के प्रति डर भर दिया। बच्चे जहां साधु देखते, वहां से डर के मारे भाग जाते। दोनों माता-पिता प्रसन्न थे। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। एक दिन दोनों भाई खेल रहे थे, साधुओं की टोली वहां से गुजर रही थी। उन्हें देखकर वे दोनों भागने लगे, और एक पेड़ पर चढ़ गए। साधु भी उसी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने लगे। दोनों भाइयों दे देखा कि साधु तो बड़े ही सज्जन है, इनसे डरने की आवश्यकता नहीं है। वे नीचे उतरे और उन्हें प्रणाम किया। उसी समय उन्हें बोध हो गया कि पिछले जन्म में वे 6 मित्र थे, जिन्होंने एक साथ साधना की थी। वापस घर आकर अपने पिता से कहा कि हमने सत्य को जान लिया है, अब हम उसी राह पर आगे बढ़ने जा रहे हैं। पिता ने समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। पिता ने कहा कि अभी तुम बच्चे हो, संसार के सुख भोग लो, फिर संन्यास ले लेना। पहले बेटे ने कहा कि भोग के लिए योग के मार्ग पर नहीं चलते हैं। धर्म मोक्ष के लिए है, परमात्मा बनने के लिए है। पिता ने कहा कि अभी रुक जाओ, दूसरे बेटे ने कहा कि समय का इन्तजार वही करते हैं जिनकी मृत्यु के साथ मैत्री है। पिता को लगा कि बेटों को समझाना मुश्किल है। लेकिन अपने बेटों को सुलाते सुलाते पिता जाग गया, उसे भी बोध हो गया। उसने अपनी पत्नी यशा से कहा कि मैं अपने पुत्रों के साथ जा रहा हूँ। पत्नी ने देखा कि पति और दोनों बेटे जा रहे हैं, तो वह भी उनके साथ चल पड़ी।

परिवार ने जब दीक्षा ग्रहण कर ली तो उनका धन राजा के कोष में जमा हो गया। रानी कमलावती ने जब यह सुना तो उसने राजा से कहा कि एक न एक दिन तो मरोगे, किसी का वमन किया हुआ तुम खा रहे हो, यह सही नहीं है। आप यह छोड़ दो। किसी के दुःख में आनंद लेना उस दुःख को अपने जीवन में निमंत्रण देने के समान है। मैं यहां खुश नहीं हूं, यह महल मुझे पिंजड़ा सा लगता है। मैं इस पिंजड़े को तोड़कर उड़ना चाहती हूं, संयम की राह पर चलना चाहती हूं। उसने कहा कि संसार दुश्मन बनाने वाला है। और उसने संयम की रह पर चलने का प्रण सुनाया। रानी के वचन सुनकर राजा के मन में भी बोध जागृत हुआ, और वह भी रानी के साथ संयम की राह पर चलने के लिए तैयार हो गया। 6 मित्रों के दुःख का अंत हो गया और वे एक साथ भिक्षु का जीवन जीने के लिए चल पड़े।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 1 नवंबर के लाभार्थी परिवार हैं : श्री दुलीचंदजी भूरचंदजी कर्नावट परिवार। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।

advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button