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UP : समाज: बेटी लाने बरात लेकर गए पिता ने पेश की मिसाल

यह बीते पंद्रह अक्तूबर की बात है। रांची (झारखंड) के कैलाश नगर की कुम्हार टोली में रहने वाले प्रेम गुप्ता अपनी बेटी की ससुराल बरात लेकर पहुंचे। ढोल-ताशे बज रहे थे। लड़की पक्ष की ओर से बहुत-से रिश्तेदार भी मौजूद थे, क्योंकि ससुराल वाले प्रेम गुप्ता की बेटी को बहुत तंग करते थे। बताया जाता है कि उसके पति ने पहले से ही दो शादियां कर रखी थीं। पिता ने सोचा कि अगर ऐसी जगह बेटी रही, तो उसका जीवन भी खतरे में पड़ सकता है। इसलिए वह खूब धूमधाम से बेटी को विदा करा लाए।

आम तौर पर हमारे समाज में अब भी अगर बेटी को ससुराल वाले बहुत ज्यादा प्रताड़ित करते हैं, तो भी उसे रिश्ते निभाने की सलाह दी जाती है। बार-बार उन्हें कह कहकर डराया जाता है कि ‘लोग क्या कहेंगे’! जो समाज इन लड़कियों के लिए कुछ भी नहीं करता, उसका डर इतना ज्यादा होता है कि लड़कियां या तो घुट-घुटकर जीने को मजबूर होती हैं या हर तरह की आफतों को झेलती हुई थक-हारकर एक दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेती है या कोई दूसरा ही उनकी जान ले लेता है।समाज की परवाह किए बिना कोई पिता ससुराल में प्रताड़ित बेटी को वापस विदा कराकर अपने घर ले आए- ऐसी घटना विरल है। अन्यथा लड़की अगर ससुराल वापस आ गई, तो ससुराल में उसके साथ हो रही प्रताड़ना को सामाजिक तानों की वजह से अक्सर छिपाया जाता है। इस घटना से संबंधित जो वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया था, उसमें लिखा था-बड़े अरमान और धूमधाम से लोग अपनी बेटियों की शादी करते हैं, लेकिन यदि जीवनसाथी और परिवार गलत निकलता है या गलत काम करता है, तो आपको अपनी बेटी को आदर और सम्मान के साथ घर वापस लाना चाहिए, क्योंकि बेटियां बहुत अनमोल होती हैं।यह बिल्कुल सच है। आखिर बेटियों को जन्म देने, पालने-पोसने, शिक्षित करने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने, फिर उनका विवाह करने में उतना ही परिश्रम लगता है, जितना कि बेटों को पालने और बड़ा करने में। ऐसे में अगर किसी गलत घर में या गलत व्यक्ति से बेटी की शादी हो जाए, तो माता-पिता को उससे मुंह क्यों मोड़ना चाहिए। भला समाज के डर से बेटी की कुर्बानी क्यों दी जाए?प्रेम गुप्ता ने भी अपनी बेटी साक्षी का विवाह 28 अप्रैल, 2022 को बहुत धूमधाम से सचिन नाम के युवक से किया था, जो झारखंड बिजली विभाग में सहायक अभियंता है। लेकिन माता-पिता को क्या पता था कि जिस इंजीनियर के हाथों में अपनी बेटी का भविष्य सौंप रहे हैं, वह उनकी बेटी की मुश्किलों को दूर करना तो छोड़िए, उन्हें और अधिक बढ़ाएगा।ससुराल में बेटी की प्रताड़ना की बातें जानकर अक्सर माता-पिता लोक-लाज के डर से आंसू बहाते हुए चुप बैठ जाते हैं या बेटी को समझौते करने की सलाह देते हैं। लेकिन प्रेम गुप्ता चुप बैठने वालों में से नहीं थे। उन्होंने सामाजिक तानों की परवाह किए बिना न सिर्फ अपने रिश्तेदारों को इसके बारे में बताया, बल्कि बरात में बेटी की ससुराल चलने के लिए भी आमंत्रित किया। अच्छी बात रही कि उनके रिश्तेदार भी उनके साथ खड़े थे।आखिरकार बिटिया हंसती-मुस्कराती अपने घर वापस आ गई। उसे अब और आंसू नहीं बहाने पड़ेंगे। पिता प्रेम गुप्ता का यह निर्णय बहुत साहसिक है। तब तो और, जब नवरात्रि के अवसर पर हम बेटियों के पांव पूजते हैं, उन्हें पूरी-पकवान खिलाते हैं। यानी उनके जीवन में किसी तरह की मुश्किलें न आएं, इसकी कामना करते हैं। यही प्रेम गुप्ता ने किया। उन्होंने अपनी बेटी के जीवन में जो दुख के कारक थे, उसे दूर किया और अपने घर में उसका स्वागत किया, न कि पराया धन समझा।यदि सभी माता-पिता इसी तरह सोचें, अपनी बेटियों के दुख को समझें, तो शायद ही कोई बेटी आत्महत्या करने पर मजबूर होगी। फिर जीवन उसे बोझ नहीं लगेगा। प्रेम गुप्ता ने समाज के सामने एक मिसाल पेश की है। हमें अपनी बेटियों को भार समझना बंद करना चाहिए। बेटियों को भी जीने का उतना ही हक है, जितना किसी अन्य को। यदि शादी नहीं चली, तो इसमें बेटियों का क्या दोष? एक राह बंद होने पर दूसरे दरवाजे भी खुलते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है-देअर इज ऑलवेज ए वे इन एवरी इमर्जेंसी। 

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