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लोकप्रियता के बावजूद कांग्रेस के लिए चुनौतियां तो है ही – 21 प्रत्याशियों के नाम घोषित करने का मामला

जयदीप शर्मा

इस बार आगामी नवम्बर – दिसम्बर 2023 को होने वाला विधानसभा चुनाव कई दृष्टिकोंण से अत्यधिक रोचक, कौतूहल पूर्ण एवं चौंकाने वाला होने जा रहा है। रोचक, कौतूहलपूर्ण एवं चौंकाने वाला इसलिए कि चुनाव परिणाम कुछ इसी तरह का रहने की संभावना है।
पिछले आम चुनाव में कुल 90 विधानसभा सीटों वाले चुनाव में केवल कांगे्रस के अत्यधिक चुनौतीपूर्ण घोषणा पत्र के कारण कांग्रेस ने भाजपा के 15 वर्षो के शासन को न केवल उखाडक़र फेंक दिया अपितु 15 वर्षो के भाजपा के शासन के बदले उन्हें केवल 15 विधायक ही दिए। देखा जाए तो 15 का यह आंकड़ा अत्यधिक रोचक माना जा सकता है। सन् 2018 के उस आम चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्यशित रूप से 68 सीटें मिली थी, शेष सात सीटें जोगी कांग्रेस एवं बसपा के बीच बंट गई थी जबकि 15 सीटें भाजपा को मिली थी।

सन् 2018 के आम चुनाव के पश्चात् मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में पिछले साढ़े चार वर्षो में छत्तीसगढ़ ने न केवल सफलतापूर्वक सर्वतोमुखी प्रगति की है अपितु चुनाव के पूर्व जो घोषणा पत्र प्रस्तुत किया था उसमें से लगभग सभी प्रमुख घोषणाएं (शराबबंदी तथा दो एक अन्य घोषणाओं को छोडक़र) पूरी कर ली गई है।

जहां तक भ्रष्ट्राचार एवं आन्दोलनों का बात है तो बात किसी भी सरकार की हो, अंतिम वर्ष आन्दोलनों का रहता है। क्योंकि यही वह अवसर एवं अवधि होता है जबकि संगठनात्मक असंतोष के मद्देनजर सरकार विवश होकर उनकी कमोवेश कुछेक मांगों को पूरा कर देती है। इस चुनावी वर्ष में भी ऐसा ही हुआ लेकिन कांग्रेस सरकार ने कर्मचारी संगठनों के असंतोष को अधिक मुखरित नहीं होने दिया। जहां तक कांग्रेस संगठन में नए दायित्व बोध देने की तथा जिला अध्यक्षों को बदलने की बात है तो कांग्रेस ने इस कार्य को भी अत्यधिक कुशलता पूर्वक पूर्ण कर लिया है। हमारा इशारा बस्तर सांसद दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाने एवं नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की ओर है। इसके पूर्व उप मुख्यमंत्री के पद पर टी.एस.बाबा को नियुक्त करके पनपने वाले एक बड़े असंतोष का समाधान कर लिया गया है। इसी तरह प्रदेश भर में जहां कहीं भी बदलाव जरूरी है, एक माह के भीतर प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज इस कार्य को पूरा करने कृत संकल्पित प्रतीत हो रहे हैं।
इस तरह देखा जाए तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समक्ष एकमात्र चुनाव को छोडक़र और कोई चुनौती नहीं है। ऐसा इसलिए भी कि अब तक कांग्रेस विधायकों के बीच पूर्णत: तालमेल बना हुआ है। यदि कोई चुनौती है भी तो वह है विधायकों के अपने क्षेत्र में परफार्मेंश को लेकर। ज्ञात हुआ है कि इसके लिए भी संगठनात्मक स्तर पर पूरी तरह पड़ताल कर ली गई है। अब सवाल यह शेष रह जाता है कि कुल मिलाकर 68 विधायकों (जिसमें मंत्रियों से लेकर आयोगों एवं मंडल अध्यक्षों की लॉबी सहित) उप चुनाव में विजयी कांग्रेस विधायकों में से कितनों का परफारमेंस ठीक है? तथा कितनों की टिकट इस बार कटेगी और नयों को मौका मिलेगा।

अंदरूनी क्षेत्रों से मिल रही (पुष्ट-अपुष्ट) जानकारी के अनुसार इस बार 25 से 30 विधायकों का जिनका परफारमेंश ठीक नहीं, का टिकट कट सकता है वहीं दो से तीन मंत्रियों का टिकट भी खतरे में है। अब जहां तक टिकट डिक्लियर होने की बात है तो सितम्बर महीनें में जारी होने वाली दो से तीन लिस्ट में पूरी तस्वीर साफ हो जावेगी। जहां तक भजपा के 21 सीटों पर प्रत्याशी घोषित होने की बात है तो उनके लिए चुनाव में खोने वाली कोई बात नहीं है। इतना अवश्य है कि भाजपा हाई कमान ने पूरें चिंतन – मनन के बाद जो तेजी दिखलाई है वह न केवल काबिले तारीफ है अपितु उनका यह कदम यह संकेत भी देता है कि भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ में अपनी खोई हुई हैसियत को पुन: हासिल करने के लिए कितना गंभीर है?

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