पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।जरूरी हैं क्षेत्रीय दलक्षेत्रीय दलों के बिना भारतीय लोकतंत्र अधूरा और बोना नजर आता है। आज के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय दल क्षेत्र विशेष के हित साधने में असमर्थ प्रतीत हो रहे हंै। राष्ट्रीय दलों की सार्थकता तभी है, जब उसमें क्षेत्रीय दलों का हस्तक्षेप बना रहे।-विकास बिश्नोई, बिरामी, जोधपुर……………….
क्षेत्रीय विकास पर ध्यानभारत की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में क्षेत्रीय दलों की भूमिका अब अति अहम और महत्वपूर्ण होने लगी है। मुख्य दलों का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति तक सीमित है, वहीं क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय विकास के साथ ज्वलंत समस्याओं पर काम करते हैं।-राजेंद्र सिंह बीदावत, रतनगढ़…………….सशक्त लोकतंत्र का उदाहरणवर्तमान में बिना क्षेत्रीय दलों के देश में राजनीति अकल्पनीय है। क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय राजनीति से जुड़कर समस्याओं का समाधान करवाने में सक्षम होते हैं। ये सशक्त लोकतंत्र का उदाहरण पेश करते हैं।-पी.सी. खंडेलवाल, सांभर लेक, जयपुर…………….केंद्र राज्य संबंधभारतीय लोकतंत्र में क्षेत्रीय दल केंद्र तथा राज्य संबंधों में प्रगाढ़ता लाने के साथ-साथ लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को भी बढ़ावा देते हंै। क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधि केंद्र तक आसानी से पहुंचा सकते हैं। हमारा देश विविधताओं से परिपूर्ण विशाल क्षेत्रफल वाला देश है। ऐसे में यहां क्षेत्रीय दलों की महती भूमिका है।-एकता शर्मा, जयपुर……………….
नकारात्मक भूमिका ज्यादाक्षेत्रीय दलों की कार्य प्रणाली व विचारधारा का विस्तृत अध्ययन करने पर इनकी लोकतंत्र में सकारात्मक भूमिका कम व नकारात्मकता अधिक दिखाई देती है। क्षेत्रीय दल परिवारवाद, जातिवाद व कहीं-कहीं तो अलगाववाद को पुष्ट करते हैं। समग्र राष्ट्रीय हितों पर संकीर्ण जातीय हितों को महत्व देना, येन-केन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करने को प्रयासरत रहना क्षेत्रीय दलों का मूल स्वभाव हो चला है।-अशोक सिंह शेखावत, जयपुर………………क्षेत्रीय दलों की पकड़ आमजन तकभारतीय लोकतंत्र विश्व के मजबूत लोकतंत्रों में शुमार है। वर्तमान में भारत में कहने को तो केंद्रीय स्तर पर दो ही गठबंधन हंै, लेकिन उन गठबंधनों को चलाने के लिए क्षेत्रीय दलों की अपनी विशेष भूमिका है। क्षेत्रीय दलों की पकड़ आम-जन तक होती है। इसी कारण बड़ी पार्टियां भी क्षेत्रीय दलों की अनदेखी नहीं कर पातीं और हर चुनाव में साझेदार के तौर पर इनको जरूर साथ लेती हैं। यह अलग बात है कि वर्तमान में क्षेत्रीय दलों की संख्या काफी बढ़ गई है, जो मजबूत विपक्ष बनने में बाधक है।- पंकज कुमावत, जयपुर………………………
इसलिए बनते हैं क्षेत्रीय दलभारत में बहुदलीय पार्टी व्यवस्था है, जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। भारत एक बहुभाषी, बहुजातीय, बहुक्षेत्रीय और विभिन्न धर्मों का देश है। भारत जैसे विशाल एवं विभिन्नताओं से भरे देश में क्षेत्रीय दलों के उदय होने के अनेक कारण हैं। प्रमुख कारण जातीय, सांस्कृतिक एव भाषायी विभिन्नताएं हैं। विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की अपनी समस्याएं होती हैं, जिन पर राष्ट्रीय दलों या केंद्रीय नेताओं का ध्यान नहीं जाता। परिणामस्वरूप क्षेत्रीय दलों का उदय होता है।-हरदेश जगा, मुरैना, मध्यप्रदेश………………..क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिकाभारत विविधताओं वाला देश है। क्षेत्र के अनुसार लोगों को रोजगार को बढ़ावा देने और क्षेत्र की संस्कृति के संरक्षण में इन दलों की विशेष भूमिका होती है। क्षेत्रीय दल राज्य के विकास के लिए दबाव बनाते हैं। क्षेत्रीय दलों द्वारा सामयिक मुद्दों को भी राष्ट्र के सामने लाने का प्रयास किया जा सकता है। अत: क्षेत्रीय विकास के लिए क्षेत्रीय दल विशेष भूमिका निभा सकते हैं।-सत्तार खान कायमखानी, मूंडवा, नागौर…………..
नए राज्यों का निर्माणभारत में न केवल राष्ट्रीय स्तर के दल, बल्कि क्षेत्रीय दल भी हंै। समय-समय पर क्षेत्रीय दलों ने नए राज्यों की मांग की, जिससे भारत में राज्यों की संख्या बढ़ी।-निशा पारीक, नापासर……………..स्थानीय क्षेत्रों से जुड़ावक्षेत्रीय दल स्थानीय इलाकों से जुड़े होते हैं। अत: वे सरकारी कल्याणकारी योजनाएं जनता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा भारत में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करते हैं।-सुभाष धायल, बीकानेर…………………..
मिलती है लोकतंत्र को मजबूतीक्षेत्रीय दल स्थानीय स्तर व क्षेत्रीय स्तर की समस्याओं तथा उपेक्षित वर्ग की ओर पूरे देश का ध्यान आकर्षित करवाते है। इस तरह वे लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं।-अन्नपूर्णा खाती, बीकानेर……………………रचनात्मक कार्य कमक्षेत्रीय दल राष्ट्रीय स्तर पर रचनात्मक कार्य कम करते हैं और नकारात्मक कार्य ज्यादा करते हैं।-माधव सिंह, श्रीमाधोपुर