CG : नारायणपुर के आदिवासी अंचल से उठी मल्लखंभ की प्रतिभा, खेलो इंडिया बीच गेम्स में राकेश ने किया कमाल

रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर अंचल के नारायणपुर जिले में मल्लखंभ जैसे पारंपरिक खेल के जरिए सामाजिक बदलाव की अद्भुत मिसाल पेश की जा रही है। ष्अबूझमाड़ मल्लखंभ अकादमीष् के संस्थापक एवं विशेष कार्यबल ;ैज्थ्द्ध के अधिकारी मनोज प्रसाद और उनके प्रशिक्षु राकेश कुमार वरदा की कहानी यह दर्शाती है कि खेल न सिर्फ व्यक्तित्व को गढ़ता हैए बल्कि पूरे समाज को नई दिशा देने में सक्षम है।
आदिवासी बच्चों के लिए जीवनदायी पहल
मनोज प्रसाद, एक पूर्व राष्ट्रीय धावक, ने 2017 में नारायणपुर में अबूझमाड़ मल्लखंभ अकादमी की स्थापना की। इस अकादमी में 5 से 15 वर्ष के आदिवासी बच्चों को निःशुल्क प्रशिक्षण, आवास, भोजन और शिक्षा की सुविधा दी जाती है। इन बच्चों में से अधिकांश अत्यंत गरीब, निरक्षर और मुख्यधारा से कटे हुए परिवारों से आते हैं। प्रसाद न केवल प्रशिक्षक हैं, बल्कि इन बच्चों के लिए एक पिता के समान हैं। वे स्वयं अपनी आय से उनकी जरूरतें पूरी करते हैं। हालांकि अब पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सहयोग से अकादमी को कुछ सहायता मिलनी शुरू हुई है।
राकेश कुमार वरदा: अबूझमाड़ से अंतरराष्ट्रीय मंच तक
अकादमी के सबसे होनहार खिलाड़ी राकेश कुमार वरदा ने खेलो इंडिया बीच गेम्स 2025 में मल्लखंभ (डेमो खेल) में स्वर्ण पदक जीतकर सबका ध्यान आकर्षित किया। राकेश नारायणपुर जिले के आदिवासी गांव कुटुल के निवासी हैं और क्षेत्र के पहले मल्लखंभ खिलाड़ी हैं। उन्होंने अब तक राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर 30 से अधिक पदक जीते हैं।
राकेश ने मात्र आठ वर्ष की उम्र में मल्लखंभ की शुरुआत की थी। उनके खेल कौशल का प्रमाण 2022 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है, जिसमें उन्होंने मल्लखंभ पोल पर 1 मिनट 6 सेकंड का सबसे लंबा हैंडस्टैंड किया था। 2023 में वे और उनकी टीम इंडियाज़ गॉट टैलेंट सीजन 10 के विजेता बने थे। राकेश ने हाल ही में बिहार में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम्स में एक रजत और तीन कांस्य पदक जीते, जबकि इससे पूर्व पंचकुला, गोवा, उज्जैन और गुजरात के राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी अनेक पदक जीत चुके हैं।
व्यक्तिगत त्रासदी और प्रेरणा की कहानी
अपने सफर के दौरान राकेश ने व्यक्तिगत संकट का भी सामना किया। गुजरात नेशनल गेम्स से लौटने के दो दिन बाद जब वे अपने गांव पहुंचे, तभी उन्हें अपनी मां के निधन की खबर मिली, जो सूचना के अभाव में उन्हें पहले नहीं मिल सकी। यह घटना उन्हें झकझोर गई, लेकिन उन्होंने खुद को संभालते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहने का निर्णय लिया।
खेलों के जरिए बदलाव की उम्मीद
मनोज प्रसाद कहते हैं, “मैं इन बच्चों को मुख्यधारा में लाना चाहता हूं ताकि वे अपने हुनर के दम पर नौकरियां पा सकें और एक बेहतर जीवन जी सकें। ये बच्चे सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए आशा की किरण हैं।” उन्होंने छत्तीसगढ़ मल्लखंभ संघ के सचिव राजकुमार शर्मा का भी विशेष आभार जताया, जो सदैव उनके सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं। मनोज प्रसाद ने कहा, “खेलो इंडिया बीच गेम्स जैसे आयोजन मल्लखंभ जैसे पारंपरिक खेलों को नई पहचान दिला रहे हैं। भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘आदिवासी खेल महोत्सव’ के लिए हम बेहद उत्साहित हैं। यदि भारत को विश्व शक्ति बनना है, तो आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा में लाना आवश्यक है, और यह खेलों के माध्यम से संभव है।”
खेलो इंडिया बीच गेम्स: पारंपरिक और तटीय खेलों का संगम
दिउ में 19 से 24 मई तक आयोजित खेलो इंडिया बीच गेम्स 2025 देश के पहले बीच गेम्स हैं, जो खेलो इंडिया योजना के अंतर्गत आयोजित हो रहे हैं। इसमें बीच सॉकर, वॉलीबॉल, कबड्डी, सेपक टकरा, पेंचक सिलाट और ओपन वॉटर स्विमिंग जैसे पदक खेल शामिल हैं। वहीं, मल्लखंभ और रज्जु खींच (टग ऑफ वॉर) को प्रदर्शन खेल के रूप में शामिल किया गया है। अबूझमाड़ के घने जंगलों से उठी मल्लखंभ की यह लहर आज राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है और आने वाले समय में यह छत्तीसगढ़ को न केवल मल्लखंभ का गढ़ बनाएगी, बल्कि आदिवासी युवाओं को स्वाभिमान, पहचान और अवसर भी प्रदान करेगी।