सार
गौरा देवी और टिंचरी माई के प्रदेश में मातृ शक्ति अबला नहीं सबला है। चिपको आंदोलन से लेकर शराबबंदी के आंदोलन में अग्रिम मोर्चे पर रही प्रदेश की मातृ शक्ति ने राज्य आंदोलन में भी अपनी पहचान अलग से स्थापित की थी। अब बदलते दौर में महिला शक्ति को अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
विस्तार
गौरा देवी और टिंचरी माई के प्रदेश में मातृ शक्ति अबला नहीं सबला है। प्रकृति की गोद में बसे गांवों की महिलाओं का अपने परिवेश से लगाव जगजाहिर है। चिपको आंदोलन, मैती आदि से यह खुलकर सामने आया था। आज भी पहाड़ की महिलाओं को खेती से जुड़ाव के कारण महिला किसान के रूप में जाना जाता है। 40 हजार से अधिक महिला स्वयं सहायता समूह इस समय प्रदेश में हैं।
महिला किसानों को दो मोर्चों पर कठिन लड़ाई लड़नी पड़ रही है। पलायन के दंश के कारण खेती किसानी का भार उनके ऊपर है तो घर को सजाने संवारने का जिम्मा भी इन्हीं का है।
मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक जेंडर डेवलपमेंट के मामले में उत्तराखंड राहत में है, लेकिन महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर कम हैं। शिक्षा में भी महिलाओं को अभी अधिक अवसर दिए जाने की जरूरत है। प्रदेश में पुरुषों की प्रति वर्ष औसत आय 1.95 लाख रुपये है और महिलाओं की मात्र 65 हजार रुपये है। महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 74.3 है और पुरुषों की 68.8 वर्ष है।
सतत विकास का लक्ष्य और महिला सशक्तिकरण
सतत विकास का लक्ष्य लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की बात करता है। नीति आयोग की ओर से इस लक्ष्य को लेकर हाल में जारी रिपोर्ट को मानें तो प्रदेश में महिलाओं को कुछ हद तक समानता के अधिकार से लेकर अन्य मामलों में राहत मिली है। नीति आयोग की यह रिपोर्ट जिलों के आधार पर महिला सशक्तीकरण की स्थिति को सामने रखती है।
एक से लेकर 100 तक के स्कोर में अल्मोड़ा सबसे आगे है तो उत्तरकाशी सबसे पीछे। सतत विकास के लक्ष्य के आधार पर कोई भी जिला ऐसा नहीं है जिसने शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल किया हो। इतना होने पर भी 13 में से आठ जिले हैं, जहां स्थिति पूरे प्रदेश की औसत स्थिति से बेहतर महिलाएं अपने आपको महसूस कर रही हैं।
महिला हिंसा : प्रदेश सरकार ने महिला हिंसा के कम से कम 65 प्रतिशत मामलों को चार्जशीट करने का लक्ष्य रखा था। देहरादून, पौड़ी और बागेश्वर ने यह लक्ष्य हासिल किया। हरिद्वार, नैनीताल और अल्मोड़ा में 50 प्रतिशत से अधिक मामले चार्जशीट किए गए।
घरेलू हिंसा : चमोली में एक लाख की जनसंख्या पर इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया। रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ में इस तरह के न के बराबर मामले सामने आए हैं। हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर में अधिक मामले सामने आए हैं।
दहेज : रुद्रप्रयाग और टिहरी में दहेज के कारण महिला उत्पीड़न के न के बराबर मामले हैं। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में प्रति लाख की जनसंख्या पर अधिक मामले रिपोर्ट किए गए हैं। बाकी जिलों में न के बराबर मामले सामने आए।
महिला स्वयं सहायता समूह और बैंक लिकेंज : रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और टिहरी के ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत से अधिक स्वयं सहायता समूहों का बैंक लिकेंज हुआ है। शहरी क्षेत्रों में 61 प्रतिशत से अधिक समूहों को बैंकों से जोड़ा गया है। पांच जिले प्रदेश के ऐसे हैं जहां शहरी क्षेत्रों में शत प्रतिशत महिला समूह बैंकों से जुड़े हैं।