छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे प्रदेश में चुनावी माहौल गर्माता जा रहा है। छत्तीसगढ़ में इन दिनों छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज केंद्र और राज्य में बैठे सत्ताधारी राष्ट्रीय पार्टियों से खफा चल रहे हैं। अब छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज, समाज हित को देखते हुए एक क्षेत्रीय पार्टी बनाने के मूड में आ गई है। इसके लिए छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने निर्वाचन आयोग से क्षेत्रीय पार्टी के गठन व क्रियान्वयन को लेकर गाइडलाइन भी मांगा है। इसके साथ ही इस बार विधानसभा निर्वाचन में दिलचस्प चुनावी मोड़ देने के लिए प्रदेश की 90 विधानसभा में से 50 विधानसभा, जिसने 29 समाज के लिए आरक्षित है और 20 जो जनरल सीटें और जहां आदिवासी समाज की भी बाहुल्यता है, वहां पर अब समाज के पदाधिकारी चुनाव के मैदान में उतरेंगे।
Trending Videosइसे लेकर महासमुंद में आयोजित प्रेसवार्ता में छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज की ओर से, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम और अन्य पदाधिकारियों ने ताल ठोक दी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा है कि, इस बार के चुनाव में समाज एक नया नारा अबकी बार आदिवासी सरकार देते हुए चुनावी मैदान में उतरेगी। उन्होंने बताया कि, छत्तीसगढ़ बनने के बाद से छत्तीसगढ़ प्रदेश में आदिवासियों के लिए बने हुए कानून उनके संवैधानिक अधिकार का लगातार हनन हो रहा है। जिसके लिए सर्व आदिवासी समाज लगातार निवेदन, आवेदन और ज्ञापन देते आ रहे हैं। 2001 में 32% आरक्षण मिलना था जो नहीं मिला। परिसीमन में आदिवासियों का आरक्षित सीट को हटा दिया गया। और पेशा कानून का नियम बहुत लंबी प्रतीक्षा के बाद बना। लेकिन उस नियम में ग्राम सभा का अधिकार खत्म कर दिया गया। नक्सल समस्या, विकास कार्यों के नाम पर आदिवासियों का विस्थापन, जमीन के मामले एवं अपने 23 सूत्रीय मांगों को लेकर लगातार सर्व आदिवासी समाज आंदोलन कर रहा है। पूर्व अध्यक्ष स्व. सोहन पोटाई के नेतृत्व में समाज में जागरूकता पूरे प्रदेश में जिला से लेकर ब्लॉक स्तर तक पहुंचा। अपनी मांग के लिए निवेदन, आंदोलन, चक्का जाम, विधानसभा घेराव किया गया। लेकिन पूर्व की सरकार और वर्तमान की सरकार ने आदिवासियों के किसी मुद्दे पर ना बात करना चाहती है और ना ही उनको दिए गए कानूनी अधिकार को देना चाहते हैं। सत्ता की कुर्सी पर बैठे आदिवासी नेताओं से समाज खफाछत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों में, पार्टियों का प्रतिनिधित्व करने हमने समाज की आवाज को विधानसभा तक पहुंचाने जनमत का प्रयोग कर नेताओं को कुर्सी दिलाई। लेकिन कुर्सी पर बैठते ही अब समाज के वही नेता पार्टियों के वफादार बनकर घूमते हैं। बहरहाल देखना होगा की, आदिवासी समाज ने जो चुनाव से ठीक पहले मैदान में उतरने जो बिगुल फूंका है आखिर उसमें आदिवासी समाज कितनी दूरी तक अडिग रह पाएगा।
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